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खुशहाली का चश्मा || hindi kahani| || Hindi kahani New | New Kahani
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खुशहाली का चश्मा || hindi kahani| || Hindi kahani New | New Kahani
बहुत समय पहले प्रतापगढ़ पर प्रसेनजीत नाम का एक राजा राज करता था। वह अपनी प्रजा का बहुत ध्यान रखता था । इसलिए प्रजा भी अपने राजा को भरपूर प्यार और सम्मान देती थी। पड़ोसी देश का राजा चतुरसेन यह देखकर बहुत चिढ़ता था उसने कई बार प्रतापगढ़ पर आक्रमण किया, पर हर बार उसे मुंह की खानी पड़ी आखिर उसने छल और कपट का सहारा लिया। उसने अपने दूत को दो जादुई चश्मों के साथ प्रतापगढ़ भेजा।एक चश्मे को लगाने से लोग खुशहाल दिखने लगते थे, जबकि दूसरा लगाने पर असलियत सामने आने लगती थी। दूत ने दरबार में कहा हमारे राजा ने आपके लिए दो जादुई चश्मे भिजवाएं हैं । एक को लगाने के बाद आपकी प्रजा खुशहाल हो जाएगी और दूसरे को लगाने के बाद असलियत नजर आएगी।! राजा अनोखे चश्मों को देखकर बहुत खुश हो गया और खुशी के मारे दूत को गले लगा लिया। यह देखकर दूत ने आगे कहा-' “महाराज, अगर आप खुशहाली वाला चश्मा सदैव लगाए रहेंगे, तो आपकी प्रजा को कभी भी कोई दुःख और तकलीफ नहीं होगी और अगर आप चश्मा बार-बार उतरेंगे, तो प्रजा को भारी मुसीबतों का सामना करना पड़ेगा। '” यह सुनकर राजा डर गया, क्योंकि वह अपनी प्रजा को अपनी जानसे भी ज्यादा प्यार करता था। वह तुरंत बोल पड़ा-' 'नहीं-नहीं, मैं अपनी प्रजा को हर संकट से बचाऊंगा, चाहे इसके लिए मुझे हर समय ही चश्मा क्यों न पहनना पड़े ।' फिर राजा ने वह खुशहाली वाला चश्मा पहन लिया। धीरे -धीरेदूत ने पूरी तरह से राजा का विश्वास जीत लिया। वह हर समय राजा के साथ रहने लगा। एक दिन मौका पाकर उसने राजा को असलियत दिखाने वाला चश्मा छिपा दिया। उसकी जगह सदैव खुशहाली दिखाने वाला दूसरा चश्मा रख दिया । अब तो राजाजब भी नगर भ्रमण पर जाता, तो लोग उसे हंसते-खेलते नजर आते यह देख,राजा बहुत खुश होता। महामंत्री यह सब देखकर बहुत दुखी हो उठता। वह राजा को सचाई समझाने का प्रयत्न करता, पर राजा उस पर ही क्रोधित होकर चुप करा देता। दूत यह देखकर प्रसन्नता से झूम उठता। [
एक दिन महामंत्री को अपने गुप्तचरों द्वारा सूचना मिली की राजा चतुरसेन उसके राज्य में आक्रमण करने की योजना बना रहा है। यह सुनते ही वह मानो आसमान से गिरा। उसे अब राजा चतुरसेन की पूरी चाल समझ में आ गई। वह तुरंत उस ओर भागा, जिस तरफ राजा नगर भ्रमण के लिए निकला था।राजा को देखते ही वह उसकी तरफ दौड़ा। उसने राजा का चश्मा जमीन पर पटक दिया। अपना चश्मा टूटते देखकर राजा का खून खौल उठा। वह गुस्से से बोला-' तुम्हें कल ही मृत्युदंड दिया जाएगा।' दूत ने यह सब देखकर पलक झपकते ही राजा को दूसरा चश्मा लगा दिया कि कहीं राजा प्रजा की असलियत न देख ले, पर महामंत्री दूत की चालाकी समझ गया। उसने झटके से खींचकर राजा का दूसरा चश्मा भी फेंक दिया । अब तो राजा का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया | उसने तमतमाते हुए अपनी तलवार निकाली और महामंत्री के पीछे दौड़ा। पर दो कदम भागने के बाद उसे मानो चक्कर आने लगे जितने भी लोग खड़े थे, वे सभी नर कंकाल लग रहे थे। बच्चे भूख से बिलबिलाकर रो रहे थे। उनकी माताएं भी जोर-जोर से रो रही थीं। राजा की आंखों से आंसू बह निकले वह वहीं सड़क पर बैठ गया। यह देखकर महामंत्री बोला-' महाराज, मैं आपको यही बताने की कोशिश कर रहा था कि यह सब चतुरसेन की चाल है। कल तो वह हमारे राज्य परआक्रमण करने वाला है । यह सुनते ही राजा ने क्रोध से दूत की ओर देखा दूत रोते हुए राजा के पैरों में गिर पड़ा । राजा ने उसे प्यार से उठाते हुए कहा-''तुम तो केवल अपना कर्त्तव्य निभा रहे थे।गलती तो मेरी ही थी जो मैंने बिना सोचे-समझे दूसरों की बात पर विश्वास किया। तुम जा सकते हो।'! दूत की आंखों से पश्चात्ताप के आंसू गिरने लगे।वह रुंधे गले से राजा से बोला-' “मैं आपको वचन देता हूं कि अब हमारे राजा सदैव आपके मित्र रहेंगे।'! यह कहकर दूत अपने साथियों के साथ चल पड़ा अपने राज्यकी ओर, एक सुखद भविष्य की उम्मीद के साथ । ०
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