अमृत की खोज hindi kahani | New New Hindi Kahaniyan

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एक था राजा चिरायु। उसके नगर का नाम भी चिरायु ही था। अब उसके नाम पर नगर का नाम पड़ा या नगर के नाम पर उसका नाम रखा गया, यह नहीं कह सकते। उसी नगर में नागार्जुन रहते थे। वह राजा के मंत्री थे, लेकिन वह तो कमाल के वैद्य भी थे। उनके इलाज की धूम दूर-दूर तक थी। नगर के लोग तो मानते थे कि राजा को चिरायु बनाया ही नागार्जुन ने है। उन्होंने ही राजा को अपनी औषधियों से बूढ़ा नहीं होने दिया है। नगर में आम चर्चा थी कि नागार्जुन ने राजा को संबसे पहले चिरायु बनाया। कुछ लोग यह भी कहते थे कि सबसे पहले उन्होंने खुद को चिरायु ब॑नाया। असल में जब उन्होंने उम्र को काबू में रखने वाली औषधि को बनाया था, तो अपने पर ही सबसे पहले प्रयोग किया था। सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था। राजा खुश थे और नागार्जुन का भी काम चल रहा था। राजा अपने मंत्री से खुश था। नागार्जुन की भी अपनी औषधियों के साथ सलाहकारी चल रही थी। उन्होंने राजा को जरूर चिरायु कर  दिया था। अपने को भी उसमें शामिल कर लिया था, लेकिन अपने परिवार के बारे में तो सोचा ही नहीं था। एक दिन उनका बेटा अचानक चल बसा। अपने बेटे की अकाल मौत ने नागार्जुन को तौड़ कर रख दिया। उन पर दुखोः का पहाड़ टूट पड़ा। कई दिनों तक नागार्जुन अपने घर से नहीं निकले | उनको कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था।  अपने ऊपर ही गुस्सा आता था कि उन्होंने राजा को चिरायु बना दिया । खुद को भी बना लिया, लेकिन अपने बेटे के लिए वह कुछ नहीं कर सके। वह उसे बचा नहीं पाए।  वह बचा तो सकते थे, पर उस तरफ उन्होंने सोचा ही नहीं। बेटे के दुःख में यों ही कुछ दिन गुजर गए।एक दिन नागार्जुन ने तय किया कि उनका बेटा गया तो गया, लेकिन अब और किसी का बेटा नहीं जाना चाहिए। वह ऐसी औषधि बनाएंगे, जिससे यह धरती मौत से परे हो जाए। इस धरती पर अब मौत नहीं आएगी।वह अमर होने की औषधि बनाएंगे। अब तक उन्होंने खास लोगों के लिए वह काम किया था। अब आम लोगों के लिए भी यह काम करेंगे। वह अमरता की औषधि बनाकर रहेंगे।
अगले दिन से उन्होंने उस औषधि पर काम करना शुरू कर दिया। वह सब काम छोड़कर उसे बनाने में जुट गए। एक सस्ता, सुंदर और टिकाऊ इलाज जिससे सभी को अमरता मिल सके | वह दिन-रात उसमें लगे रहते । न खाने की परवाह और न सोने की । उनके जुनून को देखकर उनकी पत्नी परेशान हो गई। उसने नागार्जुन से कहा-' “ये सब मत करो | प्रकृति से छेड़छाड़ मत करो । जब आप राजा के लिए औषधि तैयार कर रहे थे, तब भी मैंने टोका था। अब भी कह रही हूं इसे छोड़ दो। जिद न करो मरना-जीना देवताओं के हाथ में होता है। उसमें दखल मत दो।'' लेकिन नागार्जुन मानने को तैयार नहीं थे। उन्होंने जब अपनी पत्नी की बात नहीं मानी, तो वह भी उनके साथ इस काम में जुट गई।
अमर औषधि की खबर स्वर्गलोक में भी पहुंची।धरती पर सब अमर हो जाएंगे, यह सोचते ही इंद्र परेशान हो गए। उनका सिंहासन डोलने लगा।उनके स्वर्ग का अब क्या होगा ? मृत्युलोक के प्राणी अमर हो जाएंगे।यह कैसे हो सकता है ? इंद्र सोचने लगे कि अब कया किया जाए? उन्होंने सोचा कि सबसे पहले क्यों न नागार्जुन को समझाने की कोशिश की जाए। वह खुद नागार्जुन के पास गए और समझाया - “यह तुम क्या कर रहे हो ? तुम संसार के नियमों को क्यों तोड़ना चाहते हो। और फिर तुम जिस बेटे के लिए ये सब कर रहे हो, वह तो स्वर्ग में बहुत मजे में है। चाहो, तो उससे बात भी कर सकते हो।'! लेकिन वह अड़े रहे। उनका कहना था कि यह सब वह आम आदमी के लिए कर रहे हैं ताकि स्वर्ग की जरूरत ही न रहे | इंद्र समझाते रहे पर नागार्जुन समझने को तैयार ही नहीं हुए। परेशान इंद्र अपने स्वर्गलोक को लौट आए। आते ही अपने मंत्रियों से सलाह की । हार-थककर उन्होंने देवताओं के वैद्य अश्विनी कुमार को बुलाया। अश्विनी कुमार ने भी नागार्जुन को खूब समझाया। उनसे कहा- “संसार को उलट-पुलट करने की कोशिश मंत करो। उससे किसी भी किस्म की छेड़छाड़ ठीक नहीं है। और देवराज तुम्हें शाप दे देंगे, तो तुम बेकार में फंस जाओगे। यहां का जन्म बेकार जाएगा और परलोक भी बरबाद हो जाएगा।'! लेकिन नागार्जुन तो कुछ सुनने को भी तैयार नहीं थे। अश्विनी कुमार भी मायूस होकर लौट गए।
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औषधि की तैयारी जोर-शोर से चल रही थी। बस, एक जड़ी-बूटी उसमें मिलानी बाकी रह गई थी। एक शाम वह जड़ी-बूटी भी मिल गई । खुशी में पागल से हो गए थे नागार्जुन वह भागकर घर पहुंचे और 'मिल गई, मिल गई चिल्लाने लगे। अपने पति को इतना खुश देख, उनकी पत्नी की आंखों में आंसू आ गए।उसे याद ही नहीं आ रहा
था कि इससे पहले कब नागार्जुन इतने खुश हुए थे। अपने पति की खुशी में खुश थी वह। लेकिन उसके भीतर कुछ चल रहा था कुछ समय बाद नागार्जुन ने उसे महसूस किया। उन्होंने पत्नी से 'कहा-''तुम्हें शायद उतनी खुशी नहीं हो रही है।'' पत्नी ने कहा-''नहीं तो !'” लेकिन तब तक उनकी खुशी की खुमारी उतर चुकी थी। उन्होंने पत्नी से पूछा-' ' अच्छा तुम क्‍या चाहती हो ?' पत्नी ने कहा-' "एक बार और सोच लो।'' नागार्जुन को गुस्सा आ गया। कुछ कहना चाहते थे, लेकिन कहा नहीं। फिर वह तेजी से अपने घर के पिछवाड़े चले गए। वहीं औषधि पर काम चल रहा था। आखिरी जड़ी-बूटी उन्होंने मिला दी। उनका चेहरा चमक उठा। मंजिल पाने से चमक उठने वाला चेहरा। वह उठे और देर तक उसे देखते रहे। फिर अचानक उनका मन बदलने लगा।
चमकता हुआ चेहरा, अब उदास होने लगा था। वह अंदर जाना चाहते थे, लेकिन बहुत देर तक ठिठके रहे। अपने से ही बहस होती रही उनकी। उन्हें लगा -' अगर धरती पर अमरता आ गई, तो आदमी कभी नहीं मरेगा। अगर कोई चीज शुरू हुई है, तो उसका अंत भी जरूरी है। कुछ भी हो, अंतहीन होना सबसे बड़ा शाप है।' पत्नी ने बाहर आकर परेशान पति को देखा। तब तक नागार्जुन के मन की तमाम उधेड़बुन खत्म हो गई थी। वह अब अपने भीतर शांति महसूस कर रहे थे। उन्होंने तेजी से गड़ढा खोदा। उसमें औषधि डालकर भर दिया। पत्नी चुपचाप उन्हें देख रही थी। अचानक उसे देखकर वह मुसंकराए। फिर उनके कंधे पर हाथ रखा और कहां-'“चलो, अंदर चलते हैं।' '


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