- Get link
- X
- Other Apps
- Get link
- X
- Other Apps
भुलक्कड़ भोलानाथ के किस्से Funny Kahani | Hindi Funny Story New भुलक्कड़ भोलानाथ के किस्से Funny Kahani | Hindi Funny Story New | comedy story in hindi
भोलानाथ हद दर्जे के भुलक्कड़ थे। उनकी इस आदत से उनकी धर्मपत्नी ही नहीं, घर का नौकर भी परेशान था। उनकी यह आदत जग जाहिर थी और उनके भुलक्कड़पन के कई किस्से प्रचलित थे। कॉलेज का स्टाफ़ तथा विद्यार्थी उनकी इस आदत पर आये दिन चुटकियाँ लेने से न चूकते। एक दिन भोलानाथ भुलक्कड़पन पर कक्षा में कुछ बोल रहे थे। उन्होंने कहा, “एक विद्वान का कथन है कि प्रोफ़ेसरों को भुलक्कड़ कहने वाले स्वयं मूर्ख हैं।'' “क्या नाम है इन विद्ठान का सर?”' एक विद्यार्थी ने उत्सुकतावश पूछा, तो प्रोफेसर भोलानाथ सिर खुजलाते हुए बोले, '' क्या भला-सा नाम है पर मैं इस समय भूल रहा हूँ।'! यह सुनकर बच्चे ठठाकर हँस पड़े और प्रोफेसर बगलें झाँकने लगे।
भोलानाथ अपने हाव- भाव से पक्के दार्शनिक लगते थे। वह हमेशा विचारों में खोये रहते थे। एक दिन इस उधेड़-बुन में वह घर पहुँचे। संध्या का समय था। सड़क पर हल्का अंधेरा था। आते ही वह घर का दरवाज़ा खटखटाने लगे। ऊपर से नौकर ने उनकी ओर देखा, पर अंधेरे में उन्हें पहचान न सका। उन्हें दूसरा कोई आदमी समझकर उसने कहा, '' प्रोफ़ेसर साहेब घर पर नहीं हैं।'! “अच्छा ठीक है।”' कहकर प्रोफेसर साहब लौट पड़े। प्रोफेसर भोलानाथ इस बात से बहुत परेशान थे कि कोई भी चीज़ कहीं रखकर भूल जाते हैं। एक दोस्त ने उन्हें सलाह दी कि एक डायरी रखें और हर चीज़ रखने की जगह उसमें लिख लिया करें। प्रोफ़ेसर साहब को बात पसंद आयी और वह ऐसा ही करने लगे। एक दिन रात को जब वह सोने लगे, तो डायरी में लिखा, “'हैट खूंटी पर, सूट अलमारी में, जूते कोने में, पुस्तकें मेज पर।”' और अंत में लिखा, “मैं चारपाई पर।'' सुबह उठकर प्रोफ़ेसर भोलानाथ नहा-धोकर कॉलेज जाने लगे तो डायरी के अनुसार हर चीज़ उठा ली। आखिर में पढ़ा, “मैं चारपाई पर।'' लेकिन चारपाई देखी, खाली की खाली। अब प्रोफ़ेसर साहब बड़े चक्कर में पड़ गये कि आखिर मैं कहाँ गया। जब काफी देर हो गई तो उनकी पत्नी देखने आई। देखा तो प्रोफ़ेसर साहब मेज़ पर हाथ रखे उदास मुद्रा में खड़े हैं। पत्नी ने पूछा, “'कहिए, क्या आज कॉलेज नहीं जाना है ?”' तो लंबी साँस खींचकर प्रोफेसर साहब बोले, '' अरे भाई, जायें कहाँ से। हम हैं कहाँ? पता ही नहीं लग रहा कि मैं हूँ 'कहाँ।!! अब मामला पत्नी की समझ में आया। उसने बाँह से खींचकर प्रोफ़ेसर साहब को खाट पर बिठा दिया। फिर डायरी खोलकर उनके हाथ में दी और कहा, “' अब फिर से तो पढ़िए।'' प्रोफेसर भोलानाथ ने पढ़ा, “मैं चारपाई पर ।”' फिर देखा तो सचमुच वह चारपाई पर थे। फिर क्या था, वह गदगद् हो उठे और लगे पत्नी को बार-बार धन्यवाद देने, “' आज तुमने सचमुच हमें खोज लिया, वर्ना हम तो खो ही गये थे।”' सुबह जब प्रोफेसर साहब कॉलेज जाने के लिए तैयार होते, तो बड़ी जल्दबाजी में रहते थे। कारण था उनका भुलक्कड़पन ! कभी किसी चीज़ को ढूंढने लगते तो कभी किसी बात पर उलझ जाते और देर हो ही जाती। ऐसे ही एक दिन सुबह उन्होंने नाश्ता करके नित्य की तरह पान मुँह में दबाया और कॉलेज के लिए हड़बड़ा कर दरवाज़े की तरफ लपके | पत्नी ने देखा उनके पैरों में जूते न थे। बेचारी से न रहा गया। वह झटपट उनके जूते लेकर उनके पीछे दौड़ती हुई बोली, “और ये जूते तो रह ही गये।”! प्रोफेसर भोलानाथ जल्दी में थे ही। बिना सोचे-समझे लंबे लंबे कदम भरते हुए बोले, '' अभी रहने दो, उन्हें लौटकर खा लूंगा।'” पत्नी ने झल्लाकर माथा पीट लिया।
Read More
Comments
Post a Comment
Please do not enter any spam links in the comment box.