सबसे बड़ा कौन | बुद्धि और भाग्य की अद्भुत हिंदी कहानी | New Hindi Story
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सबसे बड़ा कौन | बुद्धि और भाग्य की अद्भुत हिंदी कहानी | New Hindi Story
एक बार बुद्धिदेवता और भाग्यदेवता में आपस में बात-चीत होते- होते विवाद उठ खड़ा हुआ। बुद्धिदेवता का कहना था की वे बड़े हैं और भाग्यदेवता का कहना था की वे बड़े हैं। साथ ही साथ वे दलीलें भी देने लगे। बुद्धिदेवता ने कहा कि "कर्म के साथ बुद्धि प्रधान है, जब तक मनुष्य बुद्धि का प्रयोग कर कोई कर्म नहीं करता, उसे कुछ हासिल नहीं होता।" इस पर भाग्यदेवता ने कहा " नहीं, तुम्हारा कथन गलत है। मनुष्य के जीवन में भाग्य का बड़ा हाथ है। यदि भाग्य में कुछ नहीं तो कोई कितनी भी बुद्धि का उपयोग कर ले कुछ हासिल नहीं होता।"
जब काफी वाद विवाद के बाद भी उन दोनों में से कोई अपनी हार मानने को राज़ी नहीं हुआ, तब बुद्धिदेवता ने सुझाया कि क्यों न वे अपनी बात को प्रमाणित करके दिखाए, जिसकी बात ठीक होगी वही बड़ा साबित होगा। भाग्यदेवता ने इस बात को मंज़ूरी दे दी। और दोनों अपनी अपनी बात को प्रमाणित करने के लिए धरती पर आ गए। एक स्थान पर उन्हें एक गड़रिया भेड़ बकरियाँ चराता दिखाई दिया। बुद्धिदेवता ने कहा " वह देखो, वह रहा एक गरीब गड़रिया। यदि उसे बिना मेरी सहायता के राजा बना दो, तो मैं समझूँ की तुम बड़े हो।" भाग्यदेवता ने इसे स्वीकार किया और अपनी शक्ति का चमत्कार दिखाने के लिए एक माह का समय माँगा। बुद्धिदेवता स्वीकृति देकर वहां से चले गए, और भाग्यदेवता ने उसे राजा बनाने के अपने यत्न शुरू कर दिए। उन्होंने बहुमूल्य हीरे मोती से जड़ी कीमती जूतियों की जोड़ी का निर्माण किया और उसे गड़रिये के रास्ते में रख दिया। कुछ क्षणों बाद गड़रिया वहां से गुज़रा और उसकी नज़र उन जूतियों पर पड़ी। उसने जूतों को देखा और अपने पैरों में पहन लिया। भाग्यदेवता : यहाँ तक तो सब ठीक हुआ, अब किसी व्यापारी को इस तक पहुंचना चाहिए और यह मेरा चुटकियों का काम है। और भाग्यदेवता ने तुरंत ही अपनी शक्ति से एक व्यापारी को उस मार्ग पर पहुंचा दिया। जब व्यापारी गड़रिये के पास नज़र गड़रिये के जूतों पर पड़ी और उसे आश्चर्य हुआ। उसने उस गडरिये को रुकवाया और उन जूतियों को खरीदने की मांग की। गड़रिया राज़ी हो गया। व्यापारी ने गड़रिये से पूछा की वह उन जूतियों का कितना मूल्य लेगा। गड़रिया मूर्ख था। उसने उन जूतियों के बदले मात्र दो मन चने अपने खाने के लिए मांगे। व्यापारी ख़ुशी ख़ुशी उसे देने को राज़ी हो गया। व्यापारी उसे अपनी दूकान पर ले गया और उसे दो मन चने अपने यहाँ से दे दिए। उन चनों को ले जाने के लिए गड़रिये ने व्यापारी से एक गधे को उधार पर लेने की बात की तो व्यापारी ने उसे अपना गधा दे दिया। गड़रिया ख़ुशी ख़ुशी गधे पर दो मन चने की बोरी रखकर चला गया।
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भाग्यदेवता " उफ़ कितना मूर्ख निकला गड़रिया, लेकिन मुझे अब इस व्यापारी के दिमाग में कुछ भरना होगा ताकि गड़रिये का रास्ता साफ़ हो सके।" और रात में जब व्यापारी सो रहा था तब भाग्य देवता उसके सपने में जाकर बोले : अरे मूर्ख, तू सोया हुआ है! तेरे तो भाग्य जाग उठे हैं। जा वे जूतियां जाकर महाराज को भेंट कर दे। महाराज तुझे मालामाल कर देंगे। इधर जब गड़रिया गधे को हांकता हुआ अपने घर जा रहा था तब उसे रास्ते में दोबारा बेशकीमती जूतियों की जोड़ी दिखी। वास्तव में भाग्यदेवता ने योजनानुसार उसे दोबारा मार्ग में रखा था। गड़रिया उन जूतियों को अपने पैरों में पहनकर चल दिया। इधर व्यापारी सुबह उठा और सपने के प्रभाव से जूतियों को महाराज के पास ले गया। वहां दरबारियों और महाराज ने जूतियों की खूब तारीफ़ की। महाराज ने व्यापारी से पूछा कि उसे वे जूतियां कहाँ से मिली और वह उनकी कितनी कीमत चाहता है। व्यापारी ने झूठ बोलते हुए कहा कि यह जूतियां उसे उसके एक मित्र ने दी हैं, जोकि एक राजा है। उसने कहा कि वह उन जूतियों के योग्य नहीं इसलिए यह जूतियां महाराज के पास ले आया। अब महाराज जो मुनासिब समझे वह कीमत व्यापारी को दे दें। महाराज ने प्रसन्न होकर पूछा कि क्या उस राजा का कोई लड़का भी है? व्यापारी ने फिर से झूठ बोलते हुए कहा की हाँ उनका एक ही पुत्र है, लाखों में एक, सुन्दर, सजीला, बहादुर, नेक और जवान। महाराज ने फिर बताया कि उनकी एक लड़की है और वे चाहते हैं की उसकी शादी उसके मित्र राजा के लड़के से हो जाये।व्यापारी राजा की बात सुनकर बहुत घबराया। पीछा छुड़ाने की दृष्टि से बात बनाते हुए बोला " महाराज आपने तो मेरी मन की बात जान ली, मैं स्वयं भी यही कहना चाहता था। "महाराज "शाबाश! तो जाओ और बातचीत करके तुरंत मुझे सूचित करो। "
राजा से पीछा छुड़ाकर व्यापारी तुरंत एक दिशा में निकल गया। वह महाराज से पीछा छुड़ाने के लिए निकल भागने के बारे में सोचने लगा। जिस रास्ते से वह जा रहा था, भाग्य से उसी रास्ते पर गड़रिया भी अपनी भेड़ बकरियां चरा रहा था। व्यापारी जब उसके निकट पहुंचा तो वह उसे पहले से भी अधिक मूल्यवान जूतियां पहने दिखाई दिया। व्यापारी ने सोचा कि हो न हो, यह गड़रिया ज़रूर कोई सिद्ध महात्मा है तभी तो इसके पास ऐसी मूल्यवान वस्तुएं हैं। गड़रिये ने उसे देखा और पूछा " कहिये सेठ जी, कैसे आना हुआ? व्यापारी ने कहा की वह अपना गधा लेने आया है। गड़रिया उसे निकट ही अपनी झोपडी पर ले गया और उसे उसका गधा लौटा दिया। व्यापारी गधे को लेकर लौटने लगा। रास्ते में उसने सोचा की इस गडरिये की असलियत जान ने के लिए छुपकर इसपर नज़र रखनी पड़ेगी। गड़रिये कि नज़रें बचाकर वह निकट ही पेड़ो के एक झुरमुट में छुप गया। वहां उसने एक पेड़ से अपना गधा बाँधा और छुपकर गडरिये पर नज़र रखने लगा। तभी उसकी नज़र कुछ ही दूर पर रखे ताम्बे के ढेर पर पड़ी। उसने सोचा की इस ताम्बे को बेचकर खूब सारे पैसे कमाए जा सकते हैं। उसने सोचा की इस ताम्बे के बारे में बाद में सोचेगा, पहले गड़रिये पर नज़र रखी जाए। कुछ ही पल बाद वहां गड़रिया आया। गड़रिया मूर्ख तो था ही, ताम्बे के ढेर को देखा और उसपर सिर टिकाकर सो गया। व्यापारी सब देख रहा था। तभी भाग्यदेवता ने अपने चमत्कार से उस ताम्बे के ढेर को सोने में बदल दिया।
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व्यापारी हक्का बक्का रह गया। कुछ समय बाद गड़रिया उठकर वहां से चला गया। व्यापारी ने सोचा की जिस व्यक्ति के स्पर्श मात्र से ताम्बा सोना हो जाता है, उसे राजा बनाना कोई मुश्किल बात नहीं है। व्यापारी उस सोने के ढेर को घर ले गया और उसे बेचकर जमीन खरीद ली और किला बनवाना आरम्भ कर दिया। किला तैयार होने के बाद व्यापारी स्वयं राजा बन गया। उसने हज़ारो लोगो को एकत्रित करके अपनी सेना बना ली। कुछ दिनों बाद उसने अपने सैनिको से उस गड़रिये को बुलाने की आज्ञा दी। गड़रिये के आने पर व्यापारी ने अपने सैनिको से कहा की आज से तुम्हारे राजा यह हैं। और व्यापारी ने गडरिये को नकली राजा बना दिया। फिर उसने लड़की वाले राजा को पत्र लिखकर विवाह की तिथि सुनिश्चित करने को कहा।महाराज ने भी अपनी तरफ से तिथि लिखकर व्यापारी के पास भिजवा दी। जब राजा की ओर से विवाह की तिथि वाला पत्र व्यापारी को मिला तो वह गड़रिये के पास पहुंचा और कहा " मुबारक हो महाराज आपका विवाह सुनिश्चित हो गया है।" गड़रिये ने अपनी मूर्खता का परिचय देते हुए कहा " सुनिए सेठ जी, आप मुझे छोड़ दीजिये। अगर मेरी भेड़ें किसी का खेत चरगयी तो मैं नाहक ही मारा जाऊंगा। " इस बात पर सभी दरबारी हंसने लगे। व्यापारी को लगा की अगर उसने महाराज के सामने ऐसी कोई मूर्खतापूर्ण बात कर दी तो वह उसी समय मारा जाएगा। उसने गडरिये को एक तरफ बुलाया और उससे कहा " ऐसी बात अगर कभी किसी के सामने कहोगे तो उसी समय मैं तलवार से तुम्हे मार डालूंगा। जो कुछ कहना हो मेरे कान में कहा करो।" गड़रिया डरते डरते बोला "ठीक है।"
विवाह की तिथि आने पर व्यापारी गड़रिये की बरात लेकर चल पड़ा। जब बरात लड़की वाले राजा के नगर के निकट पहुंची तो उधर से मंत्री बहुत से नौकर चाकर, अस्त्र-शस्त्रों से लैस सेना लेकर दूल्हे राजा की आगवानी के लिए आया। लेकिन गड़रिये ने उन्हें अपनी ओर आते देख उल्टा सोचा। उसने व्यापारी के कान में कहा " कदाचित मेरी भेड़ें इनके खेत में जा घुसी हैं और ये मेरे कपडे लत्ते छीनने आ रहे हैं। अरे बाप रे, अब क्या होगा? तब तक मंत्री आदि सब उनके निकट आ पहुंचे थे। मंत्री ने व्यापारी से पूछा " कुंवर जी आपके कान में क्या कह रहे हैं मित्र?व्यापारी ने बात बनाते हुए कहा की "कुंवर जी कह रहे हैं कि जितने भी आदमी स्वागत में आये हैं, सभी को पांच - पांच लाख रूपए पुरस्कार में दिए जाएँ।" फिर क्या था, बात ही बात में चारो ओर यह खबर फ़ैल गयी की किसी बड़े भारी सम्राट के राजकुमार की बरात आयी है। अंततः उसी दिन राजा की कन्या का विवाह उस गड़रिये से हो गया। विवाह के पश्चात् जब राजकुमारी गड़रिये के पास आ रही थी तो गड़रिये ने गहनों की छन् छन् सुनकर समझा की कोई चुड़ैल उसे मारने के लिए आ रही है। इसलिए वह एक दरवाजे की ओट में छुप गया। राजकुमारी कमरे में आयी पर गडरिये को न पाकर दूसरे कमरे में चली गयी। जब राजकुमारी कमरे से बाहर गयी तब गड़रिया अपनी जान बचने की दृष्टि से भागा। तभी उसे सीढ़ियां दिखाई दी, सीढ़ियों के माध्यम से वह छत पर पहुंच गया।
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छत की मुंडेर से झांककर उसने देखा तो उसे नदी दिखाई दी। उसने सोचा की चुड़ैल के हाथो मरने से अच्छा है की वह नदी में कूदकर अपने प्राण त्याग दे। और इसलिए वह नदी में कूद गया। यह सब कुछ भाग्यदेवता अपनी आँखों से देखते हुए अपना माथा ठोक रहे थे। भाग्यदेवता : यह तो निपट मूर्ख निकला, मूर्ख ने मेरी सारी योजना ही चौपट कर दी। तभी बुद्धि देवता मुस्कुराते हुए उनके पास पहुंचे। बुद्धिदेवता ने कहा "आखिर तुम हार ही गए बंधू, तुम्हारे लाख राजा बनाने से भी वह राजा बन न सका। आओ, अब मैं तुम्हे बुद्धि का चमत्कार दिखता हूँ। " शीघ्र ही वह एक अहीर की झोपडी के सामने पहुंचे। और कहा " इस झोपड़ी में एक दरिद्र अहीर रहता है जो रस्सी बनाकर बड़ी कठिनाई से अपनी जीविका चलता है। गड़रिये को तो तुमने अनमोल वस्तुएं दी किन्तु मेरे बिना उसने सब कुछ खो दिया। इसे केवल एक पैसा ही दे दो, फिर देखो मेरा चमत्कार। " भाग्यदेवता ने सहमति से कहा " ठीक है, देखता हूँ एक पैसे से तुम इसे राजा कैसे बनाते हो। फिर दोनों अपने रूप बदलकर अहीर की झोपडी में प्रविष्ट हुए और अहीर से एक पैसे की रस्सी खरीदकर बहार आ गए। इसके बाद बुद्धिदेवता ने कहा " चलो चलते हैं। एक माह बाद आकर देखेंगे की एक पैसा क्या रंग लाता है। उसके बाद दोनों चले गए।
उधर अहीर ने वह पैसा संभलकर एक आले पर रख दिया। कुछ दिनों बाद अचानक ही एक मछुआ उसके घर एक पैसा मांगता हुआ आया। मछुए ने बताया की उसे अपना जाल ठीक कराने के लिए एक पैसे की आवश्यकता है। अहीरे ने कहा की वह उसे एक पैसा दे तो सकता है किन्तु उसके बदले में उसे क्या मिलेगा? मछुए ने कहा की अभी तो उसके पास देने के लिए कुछ नहीं है, किन्तु जाल ठीक होने के बाद पहली बार में उस जाल से वह जितनी मछलियां पकड़ेगा वह उसे दे देगा। अहीर राज़ी हो गया और उसे एक पैसा दे दिया। कुछ दिनों बाद मछुआ अहीर के पास आया और उसे एक मछली देते हुए कहा की पहली बार में बस एक ही मछली मिली। अहीर ने वह मछली ले ली और सोचा कि इस एक मछली को बेचने से अच्छा है की इसे ही पका कर आज का भोजन कर लूँ। लेकिन जब उसने उस मछली को काटा तो उसके अंदर से एक हीरा निकलकर जमीन पर गिर पड़ा।
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अहीर ने समझा की एक मछली के पेट से कांच के टुकड़े अलावा और क्या निकल सकता है, इसलिए उसे उसने वहीँ छोड़ दिया और मछली खाकर सो गया। जब वह उठा तब रात हो चुकी थी लेकिन उसका कमरा रोशनी से भरा था। उसने देखा की यह रोशनी उस कांच के टुकड़े से आ रही थी। उसने सोचा की यह कांच का टुकड़ा तो बड़ा विचित्र है और उसे उठाकर आले पर रख दिया। झोपडी में इतनी अधिक रोशनी देखकर वह खुश था। उसने सोचा की अब वह रात में भी काम कर सकेगा। कुछ ही दिन बीते होंगे की एक रात उसके पास एक जौहरी रस्सी लेने आया। अहीर उसे रस्सी देने लगा तभी जौहरी की नज़र आले पर रखे हीरे पर पड़ी। जौहरी सोच में पड़ गया कि इतना बहुमूल्य हीरा इस फक्कड़ आदमी के पास कैसे! तभी अहीर रस्सियों का गठ्ठर उठा जौहरी की ओर बढ़ाते हुए बोला " उस कांच के टुकड़े को क्या देख रहे हैं सेठ जी! लीजिये सम्भालिये अपना माल। "जौहरी ने उससे रस्सियां ले ली और उसे पैसे दे दिए। जाते जाते जौहरी ने उससे हीरे के बारे में पूछा की उसे वह कांच का टुकड़ा कहाँ से मिला। अहीर ने सारी बात बता दी। उसके बाद जौहरी ने उससे पूछा की क्या वह उसे बेचेगा। वह उसे उसके पचास रूपए देगा। अब अहीर का माथा ठनका, उसे उसकी बुद्धि ने सचेत किया कि लगता है यह साधारण कांच का टुकड़ा नहीं, बल्कि बहुमूल्य कांच का टुकड़ा है। अधिक से अधिक कीमत लगा कर देखनी चाहिए। फिर भाव तौल करके अहीर ने उस हीरे को जौहरी को दस हज़ार रूपए में बेच दिया। अहीर ने उस दस हज़ार रुपयों से रेशम के धागों का व्यापार शुरू कर दिया। शीघ्र ही वह एक दिन शहर का सबसे बड़ा धनवान बन गया। अब उसके पास रहने के लिए एक आलीशान महल और सेवा के लिए नौकर चाकर भी थे। एक माह बीतते - बीतते वह इतना धनवान हो गया कि उससे प्रभावित होकर वहां के राजा ने अपनी बेटी का विवाह उससे कर दिया। राजा का कोई पुत्र नहीं था इसलिए राजा के मरने के बाद सारे राजपाट का वारिस अहीर ही बना। अहीर बड़ी ही बुद्धिमानी से राज-पाट चलाने लगा जिससे प्रजा भी उसे चाहने लगी। इस तरह उसने बुद्धि से काम लेकर बहुत यश और धन कमाया।
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ठीक एक माह पश्चात् एक दिन दोनों देवता अहीर के दरबार में वेश बदलकर पहुंचे। दरबारी गण उसकी जय जयकार कर रहे थे। तब बुद्धिदेवता ने मुस्कुराकर भाग्यदेवता से कहा "देख रहे हो बंधू, यह वही अहीर है जो आज बुद्धि के बल पर मात्र एक पैसे से राजा बनकर बैठा है। " इस पर भाग्यदेवता ने कहा " तुम ठीक कहते हो मित्र। वास्तव में कोई इंसान भाग्य से चाहे पूरे संसार का सुख ही क्यों न प्राप्त कर ले, लेकिन बिना बुद्धि के वह कभी उसे संजोकर नहीं रख सकता और क्षणिक सुख के पश्चात् ही दुःख के सागर में डूब जाता है। "
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