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मणिकपटना जहाँ प्रभु जगन्नाथ और बलभद्र सैनिक वेश में दही खायी थी। A mythological true story
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A mythological true story |
मणिकपटना जहाँ प्रभु जगन्नाथ और बलभद्र सैनिक वेश में दही खायी थी। A mythological true story
पुरी से कुछ किलोमीटर दूर एक गांव था।वहां एक छोटे से घर में एक ग्वालिन रहती थी। उसका नाम माणिक था। परिवार के नाम पर उसके पास केवल एक गाय और दो बछड़े थे। माणिक रोज सुबह उठती। अपना और गाय का काम निपटाती, फिर नाश्ता-पानी करके घर से निकल पड़ती। उसे पास वाले गांवों में दूध-दही देना होता था। कुछ लोग रोज के ग्राहक थे। माणिक उन्हें दूध-दही बेचकर घर लौटती थी।एक दिन माणिक दही बेचकर लौट रही थी। धूप काफी तेज थी। थोड़ा सा दही बच गया था। माणिक ने मन ही मन सोचा-'घर जाकर दही खाऊंगी।' यह बात सोचते हुए वह दो कदम ही आगे गई थी कि इतने में दो घुड़सवार उधर आ पहुंचे। वे दोनों सिपाही थे। एक के घोड़े का रंग काला और दूसरे का सफेद था। माणिक के सिर पर मटकी देखकर, दोनों वहीं उतर गए। उन्होंने उससे पीने के लिए पानी मांगा। माणिक बोली-' 'मेरे पास पानी नहीं, दही है।'' दोनों को बहुत जोर से प्यास लग रही थी। वे बोले-'“ठीक है, पानी नहीं है, तो दही ही खिला दो। तुम्हारी बड़ी मेहरबानी होगी।'' माणिक ने उन्हें दही खिला दिया और पैसे मांगे। उनके पास पैसे तो थे नहीं। उनमें से एक ने अपनी अंगूठी निकालकर उसे दे दी। माणिक बोली-'“'अंगूठी लेकर मैं क्या करूंगी?! घुड़सवार बोला-' देखो, हम दोनों इस देश के सिपाही हैं और युद्ध के लिए जा रहे हैं। हमारे पीछे राजा आ रहे हैं। तुम उन्हें यह अंगूठी दिखा देना। वह तुम्हें पैसे दे देंगे।'' कहकर दोनों घुड़सवार आगे बढ़ गए। माणिक राजा की प्रतीक्षा में वहीं एक पेड़ के नीचे बैठ गई। कुछ ही देर में राजा वहां आए। राजा के साथ आ रही थी, ढेर सारे सिपाहियों की फौज। माणिक ने राजा को रोका और बोली- “मेरा नाम माणिक है।आपके दो सिपाही अभी-अभी इस रास्ते से गए थे। उन्होंने मुझसे दही लेकर खाया पर पैसे न देकर वे एक अंगूठी दे गए। उन्होंने कहाँ था कि अंगूठी आपको देकर पैसे ले लूं। "माणिक ने आंचल से अंगूठी निकालने का प्रयास किया। वह राजा पुरुषोत्तम देव थे। उड़ीसा के राजा। उन्हें ठाकुर राजा कहा जाता था, क्योंकि वह जगन्नाथ जी के परम भक्त थे। कांची के राजा के साथ युद्ध में हारने के बाद वह फिर सैनिकों की बहुत बड़ी फौज लेकर जा रहे थे। राजा बोले-''झूठ क्यों बोलती है, सारे सैनिक तो मेरे साथ हैं। तूने किन्हें दही खिलाया?'' माणिक डर गई। उसने राजा को अंगूठी दिखाई। अंगूठी को देखा और आश्चर्यचकित रह गया। वह आश्चर्य से बोले-'“ अरे! यह तो महाप्रभु जगन्नाथ जी की अंगूठी है! ' उसे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हो रहा था। उनकी हथेली में स्वयं भगवान जगन्नाथ की हीरे की अंगूठी थी! तभी पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर से एक दूत भागता हुआ आया। उन्होंने राजा को सूचित किया कि भगवान जगन्नाथ की उंगली पर लगी हीरे की अंगूठी गायब है। राजा सब समझ गए। वह कांची युद्ध में एक बार हार चुके थे। अब अपने भक्त की मदद करने के लिए स्वयं प्रभु जगन्नाथ और बलभद्र सैनिक वेश में कांची की ओर जा रहे थे। राजा बोले-''अरे पगली, तुम कितनी अच्छी और भोली हो। तुमने स्वयं जगन्नाथ जी के दर्शनों
का लाभ लिया और उन्हें अपने हाथों से दही खिलाया। तुम सचमुच भाग्यवान हो !' माणिक फिर क्या पैसे मांगती ? वह भक्ति से गदगद होकर रोने लगी।
तब से उस जगह का नाम है-'दही खीया'।इसका अर्थ है-वह स्थान जहां पर दही खाया गया था। उस ग्वालिन के नाम पर उसके गांव का नाम राजाने “माणिक पाटणा' रख दिया। आज भी इसी नाम से उस गांव को जाना जाता है।
माणिक पाटणा के बारे में और पढ़ें :- https://learningandcreativity.com/lord-jagannath-tales-the-royal-sweeper/
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