अनोखी शर्त | एक अद्भुत जादू की कहानी | Magical Stories In Hindi

अनोखी शर्त | एक अद्भुत जादू  की कहानी | Magical Stories In Hindi

अनोखी शर्त | एक अद्भुत जादू  की कहानी | Magical Stories In Hindi| kahaniya jadu ki
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 अनोखी शर्त | एक अद्भुत जादू  की कहानी | Magical Stories In Hindi

 बहुत समय पहले की बात है। किशनगढ़ राज्य में विजय नाम का एक निर्धन ब्राह्मण रहता था। एक नाव दुर्घटना में उसके माता-पिता की मृत्यु हो गयी थी। तब से वह बहुत निराश रहने लगा था। एक दिन उसने अपने निराशा भरी जीवन से मुक्ति पाने के लिए आत्महत्या करने की सोची। यही सोचकर वह घर से निकल पड़ा। वह इन्ही सोच-विचारो में डूबा हुआ चला जा रहा था तभी उसे एक महात्मा ने आवाज़ दी। पुकार सुनकर विजय ठिठकर रुक गया और महात्मा की ओर देखने लगा। वह महात्मा के पास पहुंचा और कहा " कहिये महात्मा जी ! आपने मुझे क्यों आवाज़ दी ? इस पर महत्मा ने कहा "बेटा , तुम अपने विचारों में डूबे हुए उदास से चले जा रहे थे , इसलिए हमने सोचा कि तुम किसी बात से दुखी हो। तुम्हारा दुःख जानने के लिए ही हमने तुम्हें आवाज़ दी। बताओं बेटा , तुम्हें क्या दुःख है ? यह सुनकर विजय की आँखों में आंसू आ गये। तब महात्मा ने कहा " यह क्या बेटा तुम्हारी आँखों में आंसू  .पुरुष होकर रोते हो ? तब ने विजय ने रोते हुए कहा " महात्मा जी ! मैं अपने जीवन से बहुत दुखी हूँ। अतः आज अपने जीवन को समाप्त करने नदी की ओर जा रहा हूँ। तब महात्मा ने कहा " आत्महत्या करना तो महापाप होता है। ईश्वर ने हमें यह जीवन इस प्रकार समाप्त करने के लिए नहीं दिया है ,बल्कि कुछ करने के लिए दिया है। "तब विजय ने आंसू पोछते हुए कहा " महात्मा जी ! आपकी बात सही है ,लेकिन मेरा इस दुनिया में कोई नहीं है। " फिर विजय ने उस महात्मा को अपनी सारी आप-बीती कह सुनाई। विजय की बात सुनकर कुछ सोचकर महात्मा ने उसे अपना हाथ दिखने को कहा। महत्मा जी ने विजय का हाथ ध्यान से देखने लगे। वे बहुत देर तक  ध्यान पूर्वक विजय के हाथ की रेखाएं देखते रहें। तत्पश्चात बोले " बेटा , तुम अभी मरने वाले नहीं हो। तुम पुरे सौ साल का लम्बा जीवन जीओगे। तुम्हारे हाथ की रेखाएं कहती हैं कि तुम्हार विवाह इस राज्य की राजकुमारी से होगा और तुम उसके पति बनकर राजसुख भोगोगे। तब विजय अचरज से बोला " महात्मा जी ! आप क्यों मेरा मजाक उड़ा रहे हैं। भला किशनगढ़ की राजकुमारी रतनमाला मुझ कंगले के साथ विवाह करेगी ? तब महात्मा जी बोले " विजय ! मेरा हस्तरेखा ज्ञान कभी झूठ नहीं बोलता है। तुम्हे बताई मेरी एक-एक बात सत्य होगी। " तब विजय ने कहा " आपने तो बड़ी अनहोनी बात बताई है महात्मा जी ! अब बताइये मुझे क्या करना होगा ? इस पर महात्मा जी ने कहा " विजय ! कल एकादशी है। इसलिए कल का दिन शुभ है। कल तुम राजकुमारी रतनमाला के पास जाकर उससे विवाह की बात करो। तुम्हे अवश्य ही सफलता मिलेगी। राजकुमारी रतनमाला प्रतिदिन प्रातः काल बिल्कुल अकेली गौरी मंदिर में पूजा करने जाती है। वही समय उससे एकांत में मिलने को उपुक्त रहेगा " इसके बाद विजय महात्मा जी से विदा लेकर घर वापस आ गया।
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दूसरे दिन प्रातः काल ही वह गौरी मंदिर के बाहर जा बैठा। कुछ देर बाद ही राजकुमारी रतनमाला का रथ वहां आकर रुका। जैसे ही वह रथ से उतरकर मंदिर की ओर बढ़ी , विजय लपकर राजकुमारी रतनमाला के सामने पहुँच गया और बोला " राजकुमारी जी ! मैं आपसे कुछ कहना चाहता हूँ। " रतनमाला ने घबरा कर  पूछा " कौन हो तुम और क्या कहना चाहते हो ? तब विजय ने अपना परिचय देते हुए कहा "राजकुमारी जी ! मैं किशनगढ़ राज्य का एक नागरिक हूँ। जाति से ब्राह्मण हूँ और मेरा नाम विजय है। तथा मैं आपसे विवाह करना चाहता हूँ। " इतना सुनते ही  राजकुमारी क्रोध से भर गयी और उससे कहा ' तुम्हारी हमसे यह सब कहने की  हिम्मत कैसे हुई ? क्या तुम्हे पता नहीं कि हम तुम्हें तुम्हारी इस घृष्टता की क्या सजा दे सकते हैं ? इस पर विजय ने जवाब दिया कि " जानता हूँ राजकुमारी जी ! फिर भी मैं अपने बात पर कायम हूँ। " इतना सुनकर राजकुमारी सोच में पड़ गई। उसने विचार किया कि " यह युवक तो बड़ा दुस्साहसी प्रतीत होता है। तभी तो बार-बार अपनी हैसियत भूलकर मेरे सामने विवाह का प्रस्ताव रख रहा है। मन ही मन कुछ सोचकर रतनमाला ने विजय से कहा "मैं एक ही शर्त पर तुमसे विवाह करने को तैयार हो सकती हूँ। विजय ने झट से पुछा "वह कौन सी शर्त है राजकुमारी जी ? तब ररतनमाला ने उससे कहा " तुम कोई ऐसा काम करके दिखाओ , जो आज तक न किसी ने किया हो , न किसी ने सुना हो। तभी मैं तुमसे विवाह करने को तैयार हो सकती हूँ , अन्यथा नहीं। तब विजय ने कहा " यह तो आपने बड़ी विचित्र शर्त रखी है राजकुमारी जी ! " तब रतनमाला ने विजय से कहा " सोच लो युवक ! यदि तुम मुझसे विवाह करना चाहते हो तो तुम्हे मेरी यह शर्त पूरी करनी ही पड़ेगी। " फिर विजय ने कुछ सोचकर बोला " ठीक है राजकुमारी जी ! मुझे आपकी शर्त मंजूर है। " तब राजकुमारी ने कहा " मैं शर्त पूरी करने के लिए तुम्हे छः माह का समय देती हूँ। यदि तुम छः माह में शर्त पूरी नहीं का पाए तो तुम्हे प्राण दंड दिया जायेगा और अगर तुमने छः माह में मेरी शर्त पूरी कर ली तो मैं तुम्हारे साथ विवाह कर लुंगी। " उसके बाद विजय रतनमाला से विदा ली और वहां से चला दिया। वहां से वह सीधा उसी महात्मा को ढूंढने निकल पड़ा। काफी ढूंढने के बाद उसे एक जगह महात्मा जी मिले। विजय तुरंत उनके पास गया और राजकुमारी से हुई सारी बात उन्हें बताई। सारी बात सुनकर महात्मा जी विजय से कहा " तुम्हारी यह शर्त एक ही व्यक्ति पूरी कर सकता है , और वह है जादूगर मुंजाल। " विजय ने चौंकते हुए कहा " कौन है यह जादूगर  मुंजाल ? और वह कैसे मेरी मदद करेगा ? तब महत्मा ने विजय को कुछ समझाते हुए जादूगर मुंजाल के बारे में बताने लगे। उन्होंने कहा " सुनो , मुंजाल जादूगर मूंगा वन में रहता है। उसे जादू की अद्भुत विद्दाये आती हैं। तुम्हें उसके पास जाकर वे अद्भुत विद्दाये सीखनी हैं। किन्तु एक बात ध्यान से सुन लो वह बहुत ही दुष्ट जादूगर है तथा वह किसी को भी भूलकर जादू की विद्दा नहीं सिखाता है क्योंकि जादू की देवी से उसे यह वरदान मिला है की उसे इस दुनिया में कोई भी नहीं मार सकता है। हाँ , यदि उसके द्वारा जादू सीखा हुआ कोई भी आदमी जादू से मुंजाल जादूगर के जादू को निष्फल कर दे तो उस अवस्था में मुंजाल की मृत्यु हो सकती है। इसीलिए मुंजाल किसी को जादू नहीं सिखाता है। " तब विजय ने उदास होकर कहा " फिर वह मुझे कैसे जादू सिखाएगा ? तब महत्मा जी ने कहा " विजय बेटा ! मुंजाल जितना कठोर और दुस्ट है , उसकी पत्नी रमला उतनी ही दयावान है। वह भी कुछ जादू जानती है तथा वह मुंजाल के अत्यचार के कारण उससे पीछा छुड़ाना चाहती है। मुझे पूरा यकीन है कि वह जादू सिखने में तुम्हारी मदद अवश्य करेगी। इतना कहकर महात्मा जी शांत हो गए। इसके बाद विजय मह्त्मा जी से आर्शीवाद लेकर के मूंगा वन की ओर चल पड़ा।
संघ्या होते-होते वह मूंगा वन में जा पहुंचा। कुछ अंदर जाने के बाद उसे एक भव्य मकान दिखाई दिया तथा मकान के बाहर दरवाजे पर एक स्त्री बैठी दिखाई दी। विजय समझ गया की वह मकान उसी दुष्ट जादूगर मुंजाल का है तथा महत्मा जी के बताये हुलिए के अनुसार वह स्त्री निश्चित ही रमला है। कुछ देर सोचकर विजय सीधा उस स्त्री के पास पहुंचा और कहा " माँ , मेरा नाम विजय है। मैं मुंजाल जादूगर की की खोज में इस जंगल में भटक रहा हूँ। क्या आप उसका पता बता सकती है ? तब उस स्त्री ने कहा " तुम मुंजाल जादूगर का घर ढूंढ रहे हो ? लेकिन क्यों ? तब विजय ने अपना परिचय देते हुए उसे सारी बात सुनाई।
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 सारी बात जानकर उस स्त्री ने कहा " बेटा विजय ! जिस मकान के बाहर तुम खड़े हो , वही मुंजाल जादूगर का मकान है और मैं उसकी पत्नी रमला हूँ। फिर कुछ सोचकर उसने विजय से आगे कहा  कि " विजय बेटे ! मेरे पति अगर तुम्हे देख भी लेंगे तो तुम्हे जीवित नहीं छोड़ेंगे जादू सीखने की बात का कहना तो बड़ी दूर की बात है। मैं एक काम करती हूँ कि तुम्हे जादू के बल पर अंगूठी बनाकर तुम्हे अपने साथ मकान के अंदर ले चलूंगी और तुम्हें अंगूठी बने ही रहकर जादू सीखना होगा। तुम्हें इस बात पर ऐतराज तो नहीं है ? " तब  विजय ने सहमति जताते हुए कहा " नहीं माँ !" फिर इसके बाद रमला ने विजय को अपने जादू के बल पर अंगूठी बनाकर मकान के अंदर ले गई। बस उसी दिन से अंगूठी बना विजय छिप-छिपकर मुंजाल जादूगर को जादू के कारनामे करते देखता और जादू की विधि सीखता।
इस प्रकार विजय को मुंजाल जादूगर से जादू सीखते पुरे पांच माह बीत गए। विजय मुंजाल जादूगर से पूरी जादू की विद्दा सीख चूका था और एक दिन उसने रमला से कहा " माँ ! मेरा जादू सीखने का कार्य पूरा हुआ। अब तुम मुझे पुनः मनुष्य रूप में परिवर्तित कर दो। " इसके बाद रमला ने विजय को उसके असली रूप में ले आई। असली रूप में आने के बाद विजय ने रमला से विदा ली और वहां से चल दिया। चलत-चलते विजय एक नगर में पहुंचा और उसने सोचा " अपने जादू के बल पर मुझे कुछ धन कमाना चाहिए। इससे मेरे जादू की परीक्षा भी हो जाएगी और मेरे पास कुछ धन भी आ जायेगा। " यही सोचकर उसने अपने जादू से एक घोडा बनाया और उसकी लगाम पकड़कर उसे बेचने बाजार में चल दिया। संयोग से मुंजाल जादूगर भी उसी बाजार में घूम रहा था। तभी उसकी दृष्टि विजय व उसके घोड़े पर पड़ी। वह चौंक गया और सोचा कि " यह घोडा तो मेरे द्वारा सीखे गए जादू के बल पर बनाया गया है। कौन है यह युवक ? इसने कैसे मेरी जादू की विद्दा को सीखा ? मैं इस दुष्ट को जिन्दा नहीं छोडूंगा। " विजय को मारने के इरादे से चिल्लाता हुआ जादूगर विजय की ओर दौड़ पड़ा। मुंजाल की आवाज सुन विजय चौंक गया तथा उसे अपनी ओर आता देख वह घबरा गया। वह तुरंत जादू के बल पर कबूतर बन के उड़ गया। यह देख मुंजाल भी जादू से चील बन गया और कबूतर बने विजय का पीछा करने लगा।
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कबूतर बना हुआ विजय किशनगढ़ के राजा नवलसिंह के दरबार में जा पहुंचा , जहाँ राजकुमारी रतनमाला भी उपस्थित थी। वह उड़ता हुआ रतनमाला की ओर गया और रतनमाला के पास पहुंचकर , वह नौलखा हार में परिवर्तित होकर रतनमाला के गले से चिपक गया। यह देखकर जादूगर मुंजाल रुक गया और उसने एक योजना बनाई और कुछ देर में वह नर्तकी के भेष में दरबार में आयी और राजा नवलसिंह से कहा " महाराज ! मैं रम्भा नाम की एक नर्तकी हूँ। आपको अपनी नृत्यकला दिखाने आपके दरबार में आयी हूँ। " नवलसिंह का आदेश पाकर नर्तकी बने मुंजाल ने नृत्य करना आरम्भ किया। उसने बहुत ही मनोहारी नृत्य प्रस्तुत किया। नृत्य समाप्ति पर नवलसिंह ने उसकी प्रसंसा करते हुए कहा " वाह नर्तकी , वाह ! तुम तो बहुत अच्छा नृत्य करती हो। मांगो क्या मांगती हो।  तब नर्तकी बने मुंजाल ने कहा " महराज ! यदि आप मुझे कुछ देना ही चाहते हैं तो राजकुमारी जी के गले में पड़ा नौलखा हार इस नर्तकी को दे दें। " यह सुनकर रतनमाला चौंकी। उसने अपने गले को ओर देखा और सोचने लगी कि " मेरे गले में नौलखा हार कहाँ से आया ? वह इसी सोच में डूबी हुई थी कि नवलसिंह  ने कहा "राजकुमारी रतनमाला ! अपने गले का नौलखा हार उतारकर इस नर्तकी को दे दो। " हैरत में डूबी रतनमाला ने नौलखा हार उतारा और उसे नर्तकी की ओर उछाल दिया। इससे पहले कि नौलखा हार बना विजय नर्तकी बने मुंजाल के हाथों में पहुँचता , विजय तुरंत मटर का दाना बनकर छिपना चाहा। किन्तु मुंजाल ने उसे ऐसा करते देख लिया और वह तुरंत मुर्गा बन गया। मुर्गा बनकर जैसे ही वह मटर बने विजय को चुगना चाहा , विजय बिना देर किये एक बड़ी सी बिल्ली बन गया और मुर्गा बने हुए मुंजाल की एक झपट्टे में गर्दन तोड़ डाली।
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तदुपरांत वह अपने असली रूप में आ गया। उसके असली रूप में आते ही राजकुमारी रतनमाला उसे पहचान गई। तभी राजा नवलसिंह ने अचरज से पुछा " कौन हो तुम युवक ? और यह सब क्या माजरा है ? तब विजय ने राजा नवलसिंह को सारी बात शुरू से कह सुनाई। सबकुछ जानकर नवलसिंह ने राजकुमारी रतनमाला से कहा " तुम्हारी इस बारें में क्या राय है ? क्या तुम इससे विवाह करने को तैयार हो ? तब राजकुमारी ने कहा " पिताजी महाराज ! इस युवक ने सचमुच वह काम करके दिखाया है जो हममें से किसी ने पहले देखा होगा , ना ही सुना होगा। इसलिए यह हमारी शर्त की हर कसौटी पर खरा उतरा है। हम इससे विवाह करने को तैयार है। राजा नवलसिंह ने बड़ी धूमधाम के साथ रतनमाला का विवाह विजय के साथ कर दिया और इस प्रकार महात्मा जी की विजय को बताई सारी भविष्यवाणी सच साबित हुई।
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