उधारीलाल और नगदीलाल (एक से बढ़कर एक ) Hindi Funny Story

 उधारीलाल और नगदीलाल (एक से बढ़कर एक ) Hindi Kahani New

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Hasya kahani

 उधारीलाल और नगदीलाल (एक से बढ़कर एक ) Hindi Kahani New

एक बार एक ठग जिसका नाम उधारीलाल था, शहर से लोगों को ठग कर वापस अपने गावं लौट रहा था। ठगा हुआ धन उसकी घोड़ागाड़ी में रखें एक बोरे में भरा हुआ था।  वह बहुत प्रसन्न था। तभी उसकी दृष्टि दूर से आते एक व्यक्ति पर पड़ी। वह व्यक्ति भी एक ठग था। उसका नाम नगदीलाल था। वह उधारीलाल ठग के ही गावं का था। दोनों एक- दूसरे से अच्छी तरह परिचित थे, लेकिन भीतर-भीतर एक दूसरे के कट्टर दुश्मन भी थे। उसको देखते ही उधारीलाल मन ही मन घबराया और सोचने लगा की "अरे! यह तो नगदीलाल ही मालूम पड़ता है।  यदि इसे मेरे दौलत की भनक पड़ गई तो यह जरूर मुझे बेवकूफ बनाने की कोशिश करेगा। उधर नगदीलाल भी उसे पहचान चूका था और वह भी कुछ सोच रहा था। वह सोच रहा था की "ओह यह तो उधारीलाल है। लगता है, शहर से काफी तगड़ा हाथ मार कर आ रहा है। "
दोनों के एक-दूसरे के निकट पहुंचने पर नगदीलाल बोला "अरे भाई उधारीलाल, कहाँ से आ रहे हो ? लगता है शहर से इस बार काफी तगड़ा हाथ मरकर लाये हो। उसकी बात सुनकर उधारीलाल को मन ही मन क्रोध तो बहुत आया, लेकिन प्रकट में वह उदास स्वर में बोला "अरे नहीं भाई, तुम गलत समझ रहे हो।  मैं तो ठगी का धंधा कभी का छोड़ चूका हूँ। आजकल मैंने गल्ले का छोटा-मोटा व्यापर कर लिया है। बस भाई, किसी तरह गुजारा कर रहा हूँ।" उधारीलाल की बात सुनकर नगदीलाल मन ही मन मुस्कुराया, फिर उससे सहानभूति जताते हुए अपनत्व भरे स्वर में वोला "शायद अनाज को शहर की मंडी में ले जाने के लिए ही तुमने यह मरियल सी घोड़ागाड़ी खरीदी है।" इस पर उधारीलाल ने कहा "हाँ भाई, लेकिन आज तो इस मरियल घोड़ागाड़ी की तरह ही किस्मत भी खोटी निकली।  अनाज की एक बोरी ही शहर ले गया था, पर वह भी नहीं बिकी।" नगदीलाल ने कहा "अरे भाई व्यापर में तो मंदा_ गर्म चलता रहता है, लेकिन व्यपार तुमने अच्छा शुरू किया है। मैं भी ठगी छोड़ कर यही गल्ले का व्यापर करने की सोच रहा हूँ, लेकिन तजुर्बा नहीं है इसीलिए चाहता हूँ कि तुम्ही से परामर्श ले लूँ।" उधारीलाल ने इस पर कहा " जरूर-जरूर जब जी चाहे घर आ जाना।" नगदीलाल ने कहा " ठीक है भाई, अभी तो मै शहर जा रहा हूँ। वापस लौट कर तुमसे जरूर मिलूंगा। " फिर दोनों ने आपस में विदा ली और उधारीलाल ने अपनी घोड़ागाड़ी आगे बढ़ा दी।
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 कुछ कदम आगे बढ़ने के बाद नगदीलाल पलटा और मन ही मन बुदबुदाया " हम्म मुझे मूर्ख समझता है। नोटों से भरी बोरी को अनाज की बोरी बताता है। मैंने भी इसे दो का पहाड़ा नहीं पढाया तो मेरा नाम नगदीलाल नहीं। " मन ही मन उसने एक योजना बनाकर वह उधारीलाल से आगे निकलने के लिए एक कच्चे रास्ते पर दौड़ पड़ा। उसने अपने कंधे पर लटकी पोटली को खोला और उसमें से चमचमाती क़सीदेदार एक जूती निकालकर सड़क के बीचो-बीच रख दी। फिर वह पुनः तेजी से कच्चे रास्ते से होता हुआ आगे दौड़ पड़ा। काफी दूर निकलने के पश्चात् वह पुनः सड़क पर पहुंचा और अपनी पोटली से जोड़ी की दूसरी जूती भी निकालकर सड़क के बीचो-बीच रख दी। उसके बाद वह निकट की झाड़ियों में जा छिपा। वह अपनी योजना के बारे में सोच  रहा था कि "उधारीलाल को अपनी मरियल घोड़ागाड़ी में यहां से पहली वाली जूती तक पहुंचने में सड़क से लगभग एक घंटा लग जायेगा, जबकि कच्चे मार्ग से पैदल वहां पहुंचने में केवल पंद्रह मिनट ! वह समय की बचत और लालच में वहां तक जरूर पैदल ही जाने की सोचेगा। और वह इतनी देर में उसका माल लेकर रफूचक्कर हो जायेगा।" थोड़ी देर के बाद जब उधारीलाल पहली वाली जूती के पास पहुंचा तो उसे देखता ही रह गया। तुरंत घोड़ागाड़ी से उतरकर उसने वह जूती उठाई और दूसरी जूती के लिए इधर-उधर नजर दौड़ाने लगा, लेकिन जब उसे दूसरी जूती आस-पास कहीं नहीं दिखाई तो वह जूती को वहीँ छोड़कर घोड़ागाड़ी पर सवार होकर आगे बढ़ चला। लगभग एक मील आगे बढ़ने पर उसे सड़क के बीचो-बीच दूसरी जूती भी चमकती दिखाई दी। उसे देखने के बाद वह मन ही मन सोचने लगा कि "यह तो पहली वाली जूती की ही जोड़ीदार मालूम पड़ती है। मैं भी कितना मुर्ख हूँ। यदि वह जूती भी उठा लाया होता तो अब मेरे पास एक कीमती एवं सुन्दर जरी के काम वाली जूतियों का जोड़ा होता, लेकिन अब यदि मैं अपनी इस मरियल घोड़ागाड़ी पर पहली वाली जूती को लेने जाता भी हूँ तो कम-से-कम एक घंटा तो लग ही जायेगा और हो सकता है, इस बीच उस जूती को कोई और ही उठा ले जाए। यदि मैं कच्चे मार्ग से दौड़ के जाऊं तो उस स्थान तक पहुंचने में मुझे केवल दस-पंद्रह मिनट ही लगेंगे। " सहसा दिमाग में यह विचार आते ही उसने खोजपूर्ण निगाहों से इधर-उधर देखा। उसे कोई  दूर-दूर तक दिखाई नहीं दिया और उसे एकदम इत्मीनान हो गया तो उसने अपने घोड़ागाड़ी को सड़क के किनारे थोड़ा अंदर ले जाकर एक पेड़ से बांध दिया और पीछे की जूती लाने के लिए कच्चे मार्ग पर दौड़ पड़ा। उधारीलाल के वहां से जाते ही नगदीलाल झटपट झाड़ियों से बाहर आया और नोटों से भरी बोरी को अपने कंधे पर लादा सरपट अपने घर की ओर दौड़ पड़ा। घर पहुंचकर उसने अपनी पत्नी को सारी बात बताई, फिर शीघ्रता से अपनी पत्नी से बोला "अब तुम जल्दी से सारा धन भूंसे के ढेर में छिपा दो। मैं बाग़ के अंधे कुँए में जाकर छिप जाता हूँ ,उधारी आये तो कह देना कि शहर गएँ हैं अभी तक लौट कर नहीं आए। पत्नी ने सब समझकर कहा "ठीक है , तुम किसी बात की चिंता न करो। मैं सब संभाल लूंगी। उधर जब उधारी जूती को लेकर वापस लौटा तो घोड़ागाड़ी से नोटों की बोरी को गायब पाकर उसे गश -सा आ गया।
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लेकिन शीघ्र ही उसे सारी बात समझ में आ गयी। फिर वह घोड़ागाड़ी पर सवार होकर नगदीलाल के घर की ओर चल पड़ा। काफी देर बाद वह शाम को नगदीलाल के घर पहुंचा। घर पर पहुंचकर उसने नगदीलाल के बारे में जब नगदीलाल की पत्नी से पूंछा तो उसकी पत्नी ने उसे वही जबाब दिया जैसा कि नगदीलाल ने उसे समझाया था। उधारीलाल को समझते देर नहीं लगी कि नगदी की पत्नी साफ़ झूठ बोल रही है। मन ही मन उसने विचार किया कि " मक्कार की औरत साफ़ झूठ बोल रही है।  जरूर वह कहीं छिप गया है। खैर कब तक छिपेगा, मैं पता लगा ही लूंगा। मैंने भी उसे चार का पहाड़ा न पढ़ाया तो मेरा भी नाम उधारीलाल नहीं। "यही सोचता हुआ उधारीलाल मन मसोस कर वापस चल गया। उसके बाद उधारीलाल रोज सवेरे नगदीलाल के घर आता और उसकी पत्नी से नगदीलाल के विषय में पूछता।  पर सदा उसे एक ही उत्तर मिलता कि "अभी तो नहीं लौटे भईया। " और उधारी निराश होकर वापस लौट जाता। कुछ दिन बीतने के बाद उधारीलाल ने नगदीलाल की पत्नी पर नजर रखने की ठानी और एक दिन उसने देखा कि नगदीलाल की पत्नी एक पोटली हाथ में लेकर एक ओर जाती हुई दिखाई दी और उधारीलाल उसके पीछे हो लिया। फिर जब उधारी ने बाग़ में प्रविस्ट होकर नगदी की पत्नी को कुंए की ओर बढ़ते देखा तो वह झट निकट के एक पेड़ पर चढ़ गया।
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उधारी ने देखा कि नगदी की पत्नी ने अपनी पोटली को एक रस्सी के सहारे कुँए में लटका रही थी। उधारी समझ गया कि नगदीलाल उसी कुंए में है और उसकी पत्नी उसके लिए पोटली में भोजन ले आई थी। यह सब देखकर उधारीलाल  वापस चला गया। अगले दिन उसने एक योजना बनाकर स्वयं सुखी रोटियां लेकर बाग़ में नगदी की पत्नी के आने से पहले कुंए पर पहुंचा। फिर उसने भी पोटली को रस्सी के सहारे लटकाई और नगदी की पत्नी की आवाज़ निकालता हुआ बोला।
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(वह एक ठग था तथा उसके लिए दूसरे की आवाज़ निकालना मुश्किल नहीं था। )

" रोटियां ले लो जी। "नगदी ने तुरंत पोटली रस्सी से खोल ली, किन्तु पोटली में सूखी रोटियां देखकर वह क्रोध से चीख उठा। "अरी कम्बख्त, आज यह सूखी रोटियां क्यों ले आई ? क्या घी का अकाल पड़ गया है ?" उधारी ने तुरंत उसी आवाज़ में कहा " घी का अकाल तो नहीं पड़ा , लेकिन पैसे का अकाल जरूर पड़ गया है।  घर में घी खरीदने के लिए एक फूटी कौड़ी भी नहीं थी, इसलिए ऐसी रोटी लाई हूँ।" नगदी ने चकित होकर कहा " घर में एक फूटी कौड़ी भी नहीं ? अरी भागवान कहीं तेरी मति तो खराब नहीं हो गयी। अभी जो मैंने इतना सारा  धन लेकर दिया था, उसका क्या हुआ ? क्या उस नोटों की बोरी में आग लगा दी ? नोटों की बात सुनकर उधारीलाल की आँखे प्रसन्नता से चमक उठी, लेकिन मन की प्रसन्नता को दबाते हुए उसने उसी आवाज़ में कहा "ओह लेकिन मैं तो भूल ही गई हूँ कि उसे तुमने कहाँ छुपा कर रखा है ? "तब नगदी ने कहा " अरी भागवान, मेरे  कहने पर तूने ही तो उसे भूंसे के ढेर में छुपाया था। "उधारीलाल प्रसन्नता से बोला "ओ-हो ! अब याद आया ! सच में मैं उस बोरे के बारें में भूल ही गयी थी। अच्छा अब मैं जाती हूँ। कल से तुम्हारे लिए फिर से घी लगी चुपड़ी रोटियां लाया करूंगी। " कहकर उधारीलाल वहां से खिसक गया। थोड़ी देर बाद नगदीलाल की पत्नी आई और रस्सी लटकाकर रोटियां ले लेने के लिए आवाज़ दी। अपनी पत्नी आवाज़ सुनकर  भीतर छिपा नगदीलाल चौंक कर उछल पड़ा और बोला " अरी भागवान, आज क्या वास्तव में तेरी याददाश्त कमजोर हो गई है ? अभी-अभी तो तुम मुझे रोटियां दे गई हो, अब दोबारा क्यों ले आई हो ? पत्नी ने आश्चर्य से कहा " क्या कहते हो जी, मैं तो पहली बार रोटियां लेकर आयी हो ? "अगले ही क्षण एक विचार आते ही नगदीलाल ने कहा " जल्दी से मुझे बाहर निकाल। " नगदीलाल की पत्नी ने रस्सी खींचकर उसे बाहर निकाला। बाहर निकलते ही नगदी घर की ओर दौड़ पड़ा। दौड़ते हुए उसकी पत्नी ने उससे पूछा " अरे क्या हुआ ? कुछ बताओगे भी। " नगदीलाल ने कहा " बोल मत, चुपचाप मेरे पीछे चली आ। मुझे लगता है अब तक सब गुड़गोबर हो गया होगा।
घर पहुंचते ही सचमुच नगदीलाल ने अपना माथा पीट लिया। उसकी पत्नी ने आश्चर्य से कहा " हाय ! वह नोटों की बोरी कहाँ गई ? तब नगदीलाल बोल पड़ा " अरी गई नहीं, बल्कि वही उधारी का बच्चा हमें गच्चा देकर ले गया। अफ़सोस तो यह है कि कुछ पैसे मैंने अपने भी उसमे रख दिए थे, वह भी गए। साथ ही साथ मेरी कीमती जूतियाँ भी इसी चक्कर में चली गयी।
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