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दिसंबरी फूल || रूसी लोक कथा hindi kahani | Hindi Kahani New
दिसंबरी फूल || रूसी लोक कथा hindi kahani | Hindi Kahani New
बात पुरानी है । रूस के एक गाँव में एक अमीर रहता था । उसकी बेटी का नाम सोनिया था । सोनिया की माँ नहीं थी। वह काफी पहले चल बसी थी। सोनिया के पिता, यानी उस अमीर ने दूसरी शादी कर ली थी । दूसरी शादी से भी उसके एक बेटी हुई जिसे उसने नटाशा नाम दिया । नटाशा जब बड़ी हुई तो उसकी माँ को अपनी सौतेली बेटी सोनिया से जलन होने लगी । नटाशा भी अपनी माँ की तरह अपनी सौतेली बहन से खुश न थी, दोनों माँ बेटी सोनिया को बात-बात पर ताने देतीं सोनिया सुंदर थी । स्वभाव की भी अच्छी थी । अपनी सौतेली माँ की हर बात सर माथे पर लेती और उसे हंसते -हंसते पूरा करती । घर का भी पूरा काम संभालती । इस पर भी उसकी सैतेली माँ उसे किसी न किसी प्रकार से तकलीफ पहुँचाने की कोशिश करती। बाप बेचारा लाचार-सा यह देखता रहता और कुछ न बोल पाता । सोनिया पर जब माँ बेटी के तानों का कोई असंर न हुआ तो उन्होंने उसे घर से बाहर करने की योजना बनायी । दिसंबर का महीना था । कड़ाके की सर्दी पड़ रही थी । रूस में सर्दी वैसे भी भयंकर होती है । समूची धरती बर्फ से ढक जाती है और उसके नीचे पेड़-पौधे दब जाते हैं । उन्हीं दिनों सोनिया को उसकी सौतेली माँ ने बुला भेजा और उससे बड़े प्यार से बोली, “बेटी, पहाड़ों पर उगने वाले फूल लाभकारी होते हैं । उन में बड़े गुण होते हैं । तुम्हें चाहे कितनी भी दिक्कतें उठानी पड़े तुम वे फूल चुनकर ले आओ । तुम्हें इस काम में देर नहीं करनी चाहिए । फौरन निकलो!” सोनिया को जैसे ही आदेश मिला, वैसे ही वह पहड़ों से फूल चुनकर लाने के लिए अपने घर से निकल पड़ी ।
घर से निकलकर सोनिया सीधे जंगलों की ओर चल दी । जंगलों में वह काफी भटकती रही । आखिर वह एक पहाड़ी इलाके में पहुंची । वहाँ चारों ओर बर्फ ही बर्फ फैली हुई थी । कहीं कोई रास्ता दिखाई नहीं दे रहा था । फिर उसे दूर बहुत थोड़ा प्रकाश -सा दीख पड़ा । वह उसी दिशा में चल दी । वह जैसे-जैसे उस प्रकाश के निकट होती गयी, वैसे-वैसे वह प्रकाश और-और तेज़ होता गया । फिर वह उसके बिलकूल निकट पहुंच गयी । उसने देखा कि वह प्रकाश प्रचंड अग्नि से निकल रहा है । और उस अग्नि के चारों ओर कई पुरुष बैठे हैं । सोनिया ने उन पुरुषों की संख्या गिनी। उनमें से एक पुरुष थोड़े ऊंचे और भव्य आसन पर बैठा था । भव्य आसन पर बैठा पुरुष उम्र में बाकी सब से बड़ा था और उसके सर पर ताज और हाथ में राजदंड था ।सोनिया बेधड़क उस के पास चली गयी और फिर उसने झुककर उसका अंभिवादन किया ।
पुरुष ने भी बड़ी सहजता से उसे स्वीकार किया । साधारण आसनों पर बैठे एक पुरुष ने सोनिया से पूछा, “बेटी, कौन हो तुम? इस ठंड में और इस दुर्गम इलाके में तुम कैसे आयी हो? इतना जोखिम उठाकर तुम्हारे यहाँ आने का कारण क्या है!” फिर उस पुरुष ने अपना परिचय दिया और बोला, "हम सब महीने राजा हैं । हमारी कूल संख्या बारह है । हम बारी-बारी से इस सिंहासन पर बैठते हैं और राज करते हैं । हमारे नाम हैं: जनवरी,फरवरी, मार्च, अप्रैल, मई, जून, जुलाई,अगस्त, सितंबर, अक्तूबर, नवंबर और दिसंबर । इस समय दिसंबर राजा, यानी हम सिंहासन पर विराजमान हैं।तुरंत सोनिया राजा दिसंबर की ओर मुड़ी और उसे अपनी कहानी सुनाने लगी ।सोनिया की कहानी सुनकर राजा दिसंबर उदास हो गया । उसने सोनिया को सांत्वना' दी और राजा जून को संबोधित करते हुए बोला कि उसकी जगह वह सिंहासन पर बैठे और शासन संभाले । फिर उसने राजा जून के लिए सिंहासन खाली कर दिया । राजा जून जैसे ही उस पर बैठा, वैसे ही उसने अपने मुँह से कुछ कहा । उसका कहना था कि तुरंत चारों तरफ की बर्फ पिघल कर पानी हो गयी और देखते ही देखते वहाँ हरियाली ही हरियाली दिखने लगी । वहाँ कई तरह की फसलें थीं, पौधे थे और उन पौधों पर फूल थे । राजा जून की अनुमति से सोनिया ने अपनी झोली फूलों से भर ली । राजा ने यह भी वरदान दिया कि ये फूल उसके घर पहुंचने तक सूखेंगे नहीं । सोनिया की इच्छा -पूर्ति हो जाने के बाद राजा जून सिंहासन से उठकर फिर साधारण आसन पर जा बैठा और उसकी जगह राजा दिसंबर ने सिंहासन संभाल लिया । फिर चारों तरफ बर्फ ही बर्फ दिखने लगी और वहाँ कोहरा छाने लगा । सभी राजाओं को नमन करके सोनिया वहाँ से लौट पड़ी और पहाड़ों-जंगलों को पार करती हुई फूलों से भरी झोली के साथ अपने घर आ पहुंची ।
अपने सामने सोनिया को सही-सलामत पाकर नटाशा और उसकी माँ बुरी तरह से चौंक उठीं और फिर हैरान-सी उसे देखने लगीं । वे दरअसल सोच भी नहीं सकती थीं कि इस बेमौसम में सोनिया दुर्गम पहाड़ों से झोली-भर फूल ले आयेगी और असंभव को संभव कर दिखायेगी । वे ईर्ष्या से जल-भुन गयीं । और उसे डांटते हुए बोलीं, “बताओ, तुम्हें ये फूल कहां से मिले और कैसे मिले? सोनिया के साथ जो कुछ बीता था, उसने वह पूरा का पूरा कह सुनाया । सोनिया का वृत्तांत सुनकर नटाशा के मन में भी उन फूलों को पाने की इच्छा जागी, और वह सोनिया द्वारा बताये गये रास्ते से जंगलों पहाड़ों को पार करती हुई उसी बर्फीले स्थल पर पहुंची । वहां उसे वही प्रकाश दीख पड़ा । वह उसी की दिशा में चलती हुई राजाओं के पास पहुँची । राजाओं ने जब एक और लड़की को वहाँ देखा तो उससे उसके आने का कारण पूछा । नटाशा का उत्तर बड़ा ही दंभपूर्ण था । बोली, "तुम्हें इसंसे क्या लेना-देना? तुम अपना काम करो और मुझे फूल दो।" इतना सुनकर दिसंबर राजा को बहुत क्रोध आया और सिंहासन पर बैठे राजा ने अपना दंड हिलाया और बर्फ की परतें उस पर कड़ कड़ करती आ गिरी । नटाशा उन्हीं परतों के नीचे दब गयी । बेटी का इंतजार करते -करंते सोनिया की सौतेली माँ भी बेटी को ढूंढ़ने घर से निकल पड़ी और उसी प्रकार जंगलों -पहाड़ों को पार'करती हुई उस प्रकाशमान अग्नि के निकट पहुंची । वहां उसे वही राजा मिले और उनसे उसने वैसे ही व्यवहार किया जैसे कि उसकी बेटी नटाशा ने किया था । ज़ाहिर है कि उसकी वही गत हुई जो उसकी बेटी की हुई थी । वह भी अब बर्फ की परतों के नीचे दब गयी थी । माँ और बेटी जब वापस घर न आयीं तो सोनिया को चिंता हुई । वह उन्हें खोजने घर से निकल पड़ी और उन्हीं दुर्गम स्थलों को पार करती उन राजाओं के पास पहुंची । राजाओं ने उसे बताया कि कैसे माँ-बेटी ने उनके साथ दुर्व्यवहार किया और फिर कैसे दंडित हुईं । सोनिया ने विनम्नता पूर्वक उनसे उनके व्यवहार के लिए क्षमा मांगी और उन्हें फिर से जीवित कर देने के लिए प्रार्थना की । राजाओं ने वैसा ही किया । अब तीनों माँ-बेटियाँ खुशी-खुशी घर लौट रही थीं ।
वे फूल जो जून के महीने में खिलने चाहिए थे, वे क्योंकि दिसंबर में खिले थे उन्हें "दिसंबरी फूल" नाम दिया गया । तभी से यह नाम प्रचलित हो गया है ।
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