जब शनि और हनुमान जी का हुआ युद्ध और फिर ? A mythological story

 जब शनि और हनुमान जी का हुआ युद्ध और फिर ? A mythological story | hindi kahani

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A mythological story |

जब शनि और हनुमान जी का हुआ युद्ध और फिर ? A mythological story | hindi kahani

 बहुत समय पहले की बात है शनिदेव ने लंबे समय तक भगवान शिव की तपस्या की। उनकी तपस्वा से प्रसन्‍न होकर एक दिन शिवजी प्रकट हुए और शनि को वरदान मांगने को कहा। शनि बोले-“'भगवन! ब्रह्माजी सृष्टि के रचयिता हैं, तो विष्णुजी पालनकर्ता हैं ओर आप इन दोनों में संतुलन बनाए रखते हैं, किंतु सृष्टि में कर्म के आधार पर दंड देने की व्यवस्था नहीं है। इसके कारण मनुष्य ही नहीं, अपितु देवता तक भी मनमानी करते हैं। अतः मुझे ऐसी शक्ति प्रदान कीजिए, ताकि मैं उद्‌दंड लोगों को दंड दे सकूं।'” शनिदेव के विचार से शिवजी बहुत प्रभावित हुए और उन्हें दंडाधिकारी नियुक्त कर दिया। वरदान प्राप्ति के बाद शनि घूम-घूमकर ईमानदारी से कर्म के आधार पर लोगों को दंडित करने लगे। वह अच्छे कर्म पर परिणाम अच्छा और बुरे कर्म पर बुरा परिणाम देते |
इस तरह समय बीतता गया। उनके प्रभाव से देवता, असुर, मनुष्य और समस्त जीवों में से कोई भी अछूता नहीं रहा। कुछ समय बाद शनि को अपनी इस शक्ति पर अहंकार हो गया।वह स्वयं को सबसे बलशाली समझने लगे। एक बार की बात है रावण के चंगुल से सीता को छुड़ाने के लिए वानर सेना की सहायता से जब राम ने सागर पर बांध बना लिया, तब उसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी उन्होंने हनुमान को सौंपी। हमेशा की तरह शाम को शनि भ्रमण पर निकले, तो सागर सेतु पर उनकी निगाह पड़ी । उन्होंने नीचे उतरकर देखा तो पाया कि हनुमान सेतु की रखवाली की जगह ध्यानमग्न बैठे थे। यह देख कर शनि क्रोधित हो गए और हनुमान का ध्यान भंग करने की कोशिश करने लगे, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। हनुमान पूर्ववत ध्यान में डूबे रहे। इस पर शनि का क्रोध सातवें आसमान पर पहुंच गया। उन्होंने हनुमान को बहुत भला-बुरा कहा, फिर भी उन पर कोई असर नहीं हुआ। आखिर में शनि ने उन्‍हें युद्ध की चुनौती दी । तब हनुमान विनप्रता से बोले-'“शनिदेव! मैं अभी अपने आराध्य श्रीराम का ध्यान कर रहा हूं । कृपया मेरी शांति भंग न करें।' ! लेकिन शनि अपनी चुनौती पर कायम रहे | तब हनुमान ने शनि को अपनी पूंछ में लपेटकर पत्थर पर पटकना शुरू कर दिया ।शनि लहूलुहान हो गए। हनुमान उन्हें लगातार पटकते ही जा रहे थे। अब'शनि को अपनी भूल का अहसास हुआ कि उन्होंने हनुमान को चुनौती देकर बहुत बड़ी गलती की। वह अपनी गलती के लिए माफी मांगने लगे, तब हनुमान ने उन्हें छोड़ दिया। शनि के अंग-अंग में भयंकर पीड़ा हो रही थी। यह देखकर हनुमान को उन पर दया आई और उन्होंने शनि को तेल देते हुए कहा-' इस तेल को लगाने से तुम्हारी पीड़ा दूर हो जाएगी। लेकिन याद रखना, फिर कभी ऐसी गलती दोबारा मत करना।'” ““भगवन! मैं वचन देता हूं, आपके भक्तों को कभी कष्ट नहीं दूंगा।''- शनि ने कहा। उसी दिन से शनि देव को तेल अर्पित किया जाने लगा।
 


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