स्वार्थ-सिद्धि || A Unique Moral Story With Valuable Lessons || Class 9

 स्वार्थ-सिद्धि || A Unique Moral Story
स्वार्थ-सिद्धि || A Unique Moral Story With Valuable Lessons || Class 9 || inspirational moral stories
Moral Kahani In Hindi

सियाराम महाकंजूस था । एक दिन पड़ोसी गाँव से जंगल के रास्ते अपने गाँव को लौट रहा था । रास्ते में एक पेड़ के नीचे उसे खांसता-कराहता एक बूढ़ा दीख पड़ा । बूढ़े ने कहा, ' श्रीमान, प्यास से मैं मरा जा रहा हूँ । मुझ पर दया कीजिए और थोड़ा-सा पानी पिलाकर मुझे बचाइए । ” बूढ़े की बात सुनकर सियाराम रुक तो गया, पर उससे बोला, ''सुनो, पानी तो मेरे पास है, पर मैं पिलाऊँगा तभी जब तुम मुझे उसके बदले में ज़्यादा से ज़्यादा रकम दोगे । बोलो, क्या तुम्हें मंजूर है? बूढ़ा पल भर के लिए तो सोच में पड़ गया, पर तुरंत बाद ही उसने चांदी का एक सिक्का निकाला और उसे सियाराम के हवाले कर दिया । सियाराम ने सिक्का अपने कब्जे में कर लिया और बदले में उसने पानी पिलाकर बूढ़े की प्यास बुझायी । पानी पी लेने के बाद बूढ़ा बोला, “श्रीमान, अब मेरी जान में जान आयी है । मैं भी आपके गाँव चलता हूँ । वहाँ मैं आपको सैकड़ों -हज़ारों अशर्फियाँ दिला सकूंगा ! “अरे, तुम दिखते तो कंगाल हो और बात करते हो सैकड़ों-हज़ारों अशर्फियों की!” सियाराम उससे ह॒ज्जत करता हुआ बोला, “गनीमत समझो कि तुम्हारी जान बच गयी, वरना... । थोड़े से पानी के बदले में मुझे चांदी का सिक्‍का देने वाला मूर्ख हो, तुम्हारे जैसे व्यक्ति से मैं क्या कोई उम्मीद कर सकता हूँ? जाओ, अपना रास्ता नापो । ” किंतु सियाराम की इस हुज्जत से बूढ़ा परेशान नहीं हुआ । वह बोला, “आप मेरी बुद्धि को ऐसी-वैसी मत समझिए  कल मैं आपके घर के सामने खड़ा होकर आपसे दान माँगूंगा । आप दान में मुझे एक अशर्फी दीजिएगा "और फिर देखिएगा कमाल ! मैं आप को मालामाल कर दँँगा!” "एक अशर्फी! न, न, मैं तुम्हें एक फूटी कौड़ी भी नहीं दूंगा । “अरे आप क्‍यों नाहक घबरा रहे हैं! बूढ़े का तर्क भी जारी था, '' मेरी बात पहले ध्यान से सुनिए । आप मुझे एक अशर्फी दान में देंगे तो आपके पड़ोसी और दूसरे लोग यही समझेंगे कि मुझ में ज़रूर कोई बात है जो आप जैसा व्यक्ति मुझे दान दे रहा है । इस लिए वे भी मुझे दान में अशर्फियाँ देने लगेंगे । फिर मैं उनसे कहूंगा कि इस दान का फल तभी मिलेगा जब वे मुझे रोज़ लगातार एक महीने तक दान देते रहेंगे । मेरे पास अशर्फियाँ इकट्‌ठी हो जायेंगी, मैं आप को रोजाना एक सौ अशर्फियाँ देनी शुरू कर दूँगा ।”' "सौ अशर्फियाँ हर रोज!
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Moral Kahani In Hindi
सियाराम ने विस्मय से अपना मुँह खोला, “बात तो तुम पते की कह रहे हो । पर यदि तुमने धोखा दिया तो?” उसके चेहरे पर संदेह था । "इतना संदेह है मुझ पर तो अभी मुझ से एक अशर्फी ले लीजए और कल मुझे यही अशर्फी दान स्वरूप लौटा दीजिएगा ।  बूढ़े ने एक अशर्फी सियाराम के हाथ पर रख दी । सियाराम ने मान लिया । अब बूढ़ा सियाराम के साथ उसके गाँव की ओर चल पड़ा । दूसरे दिन वही सब कुछ हुआ, जो तय किया गया था । गाँव में यह खबर हवा की तरह फैल गयी कि उनके यहाँ एक बूढ़ा आया है जो बहुत ही पहुंचा हुआ है और सियाराम ने उसे एक अशर्फी दान में दी है । लोग हैरान थे । क्या सियाराम भी किसी को कुछ भेंट-स्वरूप दे सकता है? ज़रूर बूढ़ा अद्भुत चमत्कार वाला होगा, वरना सियाराम जैसा कंजूस किसी को कुछ देने वाला है? अब हर किसी के मन में बूढ़े से वरदान पाने की इच्छा लगी ।  धनी व्यापारी ही नहीं, आम लोग भी बूढ़े के पास जाने लगे । वे उसके निकट जाते, उसके सामने भेंट-स्वरूप एक अशर्फी रख देते और अपना माथा नवाकर वहां से लौट पड़ते । इस तरह पहले दिन ही बूढ़े ने ढेर-सारी अशर्फियाँ इकट्ठी कर लीं और उनमें से काफी सियाराम के हवाले कर दीं । सियाराम को अशफियाँ देते समय उसने केवल इतना ही कहा, “कल भी आप मुझे ऐसे ही एक अशर्फी भेंट में देंगे। पर सियाराम की संदेह करने की आदत गयी नहीं थी। बोला, "मान लिया ये अशर्फीयाँ तो मेरी हैं । पर कल अगर तुम मेरी एक अशर्फी लेकर ग़ायब हो गये तो ? बूढ़े ने चुपचाप सियाराम के हाथ पर एक अशर्फी पेशगी में रख दी और उसके यहाँ से चला आया । दो हफ्ते मुश्किल से गुज़रे होंगे कि सियाराम से बूढ़े के पास ढेरों अशर्फियाँ बच गयीं । उस रकम से बूढ़े ने एक बढ़िया सा मकान खरीदा और खाना बनाने तथा अपनी देख-रेख के लिए दो नौकर रख लिये । उसके पास क्‍योंकि भारी रकम बची हुई थी, इस लिए उसने बाकी रकम ब्याज पर दे दी | उसकी ज़िंदगी मज़े से कटने लगी ।
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 लेकिन बूढ़े ने सियाराम से हर रोज़ एक अशर्फी भेंट में लेना नहीं छोड़ा । उधर जो लोग बूढ़े को हर रोज़ भेंट चढ़ा रहे थे, उनके मन में क॒छ संदेह जाग उठा । एक व्यक्ति ने बूढ़े की दिनचर्या पर आँख रखनी शुरू कर दी । इस तरह दो दिनों में ही हकीकत सामने आ गयी । लोगों ने बूढ़े और सियाराम को धर दबोचा और उन्हें न्यायाधीश के सामने पेश किया । बूढ़ा न्यायाधीश के समक्ष ज़रा भी नहीं घबराया । बोला, ''महोदय, इसमें सियाराम ने कोई धोखा नहीं दिया । उसने मुझ पर विश्वास किया और मुझे भेंट में एक अशर्फी देता रहा । बाकी लोगों को जिन्होंने मुझे भेंट स्वरूप अशर्फियाँ दीं, मैं ने किसी प्रकार का आश्वासन नहीं दिया । वे स्वयं ही मेरे पास आते रहे और भेंट चढ़ाते रहे । भेंट स्वीकार करना कोई अपराध नहीं । दूसरे, इस गाँव में किसी भी परिवार से मेरे पंद्रह से ज़्यादा अशर्फियाँ नहीं आयी हैं । हाँ, सियाराम से मैंने काफी फायदा उठाया है जिसके बदले में मैं उसे ज़्यादा से ज़्यादा अशर्फियाँ हर रोज़ देता रहा हूँ । लेकिन न्याय चाहने वाले इस विवरण से संतुष्ट नहीं थे । वे बोले, “यह केवल मनघड़ंत कहानी है और हमें लूटने की साज़िश है । यदि इन्हें छोड़ दिया गया तो ये दूसरे लोगों को भी धोखा देते रहेंगे । इसलिए इन्हें सज़ा मिलनी ही चाहिए । तब बूढ़े ने हाथ जोड़कर न्यायाधीश से  प्रार्थना की, “महोदय, मैं पच्चीस वर्ष का था जब से यह योजना मेरे मन में चल रही थी । मैं गाँव-गाँव घूमा, शहर-शहर घूमा, लेकिन मुझे कोई ऐसा व्यक्ति नहीं मिला जो मेरी इस योजना को कार्य - रूप देने में सहायक होता। अब कहीं बुढ़ापे में मुझे इस योजना को सफल करने का अवसर मिल पाया।  “हम तुम पर विश्वास कैसे करें? क्‍या तुम्हें अपनी-योजना को सफल करने के लिए यही गाँव मिल पाया? दूसरी जगहों पर तुम असफल क्‍यों रहे?” न्यायाधीश ने पूछा ।“इसका एक कारण है । दूसरी जगहों पर लोग सियाराम जैसे व्यक्ति का अनादर करते थे । वे उसका अनुसरण कभी न करते । इसलिए अपनी योजना को अमल में लाने का मुझे कभी मौका नहीं मिला । यहाँ बात दूसरी थी । यहाँ अनेक लोग उसके रास्ते पर चलना चाहते थे । और उससे लाभ उठाना चाहते थे । इसलिए जो कामयाबी मुझे यहाँ मिली, और कहीं नहीं मिल सकती थी । दूसरे शब्दों में, यह गाँव अपनी तरह का अनूठा गाँव है ।” बूढ़े ने विनम्रतापूर्वक उत्तर दिया ।
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 निस्संदेह, बूढ़े का इशारा उस गाँव के लोगों की मनोवृत्ति की ओर था । वे केवल अपना स्वार्थ साधना चाहते थे, और इसलिए जो भी उसे भेंट -स्वरूप देते थे, स्वार्थ -सिद्धि के लिए देते थे । बूढ़े की बात न्यायाधीश से न्याय चाहने वालों की समझ में भी आ गयी । वे मारे शर्म के पानी-पानी हो रहे थे । उधर न्यायाधीश भी असलियत समझ गया था । उसने जान लिया कि इस घोटाले के पीछे लोगों की स्वार्थ-सिद्धि ही है, बूढ़े की छलबाज़ी नहीं । इसलिए निर्णय बूढ़े और सियाराम के पक्ष में हुआ । इस घटना ने सियाराम को भी झकझोर दिया । उसे जैसे कि किसी ने आइने में उसका असली चेहरा दिखा दिया हो । उसमें एकदम परिवर्तन आ गया । वह अब कंजूस नहीं रहा. था-वह सच्चा दानी और समाज सेवी बन गया था।
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