सेठ जी का नौकर || Funny Kahani || Hindi Funny Story || Comedy Story In Hindi
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Hindi Funny Story |
सेठ जी का नौकर || Funny Kahani || Hindi Funny Story || Comedy Story In Hindi
सेठ घरम चन्द ने एक नौकर रखा। वे नौकर की खोज में पूरा एक साल बर्बाद कर चुके थे तब जाकर उन्हें नौकर मिला था। उन्होंने काफी ठोक-बजा कर देखा-भाला। वह छोटा-सा लड़का था। काफी सीधा था। खाना कम खाता था, तनख्वाह कम लेता था लेकिन कान का कच्चा था। पर ऊचा सुनना सेठ जी को अयोग्यता नहीं लगी। लेकिन सेठ जी को यह मालूम नहीं था कि नौकर सीधा कम है बल्कि जन्म से ही मंदबुद्धि किस्म का है। उन्हें तो उस वक्त एक ही चीज देखनी थी कि सीधा-शरीफ होगा तो चोरी नहीं करेगा, पैसा बढ़ाने की जिद नहीं करेगा, पर सेठ जी को क्या मालूम कि वह घरेलु नौकर उनके लिए सिरदर्द बन जाएगा। कुछ ही घंटो में सेठ जी को पता चल गया मगाते कुछ हैं, नौकर ले कुछ आता है, कहते... कुछ हैं, सुनता कुछ है। सबसे बड़ा पहाड़ उस दिन टूटा जब सेठजी के घर में उनकी लड़की के लिए रिश्ते वाले आए। सुबह से तैयारिया चल रही थीं लड़के वाले पहुचे तो नौकर रामू हाथ बाधे ड्राइग रूम में खड़ा हो गया। सेठ जी ने सोचा, नौकर ऊचा सुनता हैं, इसलिए चौख कर बोलने की जगह इशारे से पानी लाने को कहा ज़ाए। उन्होंने अपना हाथ गिलास की तरह बना कर मुह पर घूट भरने का इशारा करते हुए पानी लाने को कहा। नौकर ने सोचा, सेठ जी तो चीख-चीख कर चीजें मगाते हैं, इशारे से मगा' रहे हैं, इसका मतलब है शराब मंगा रहे होंगे। वह फोरन सेठ जी के कमरे की ओर चल दिया और अलमारी से शराब की बोतल निकाल लाया। लाकर उसने चुपके-से लड़के के बाप को थमा दी। और फुसंफुसा कर उसके कान में कहा, “पानी के साथ पियेंगे साहब या सोडा के साथ?” लड़के के पिता बड़े ही सात्विक प्रवृति के थे। वे लहसुन-प्याज, चाय सिगरेट से भी परहेज करते थे, शराब तो फिर बहुत दूर कर बात थी। वे शराब देख कर बिदक गए। उधर सेठ जी ने रामू को शराब लाते देखा तो उनकी हालत पतली हो गई। सारे किए-कराए पर पानी फिर गया था। उन्होंने नौकर को डपटते हुए कहा, “पागल हो गया क्या, कान में तेल डाला कर।” उसके बाद उन्होंने लड़के के पिता से कहा, “माफ करना जी, नौकर ऊंचा सुनता है। ये दवाई के लिए शराब रखी थी, पानी माँगने पर उसे ले आया।” इतनी देर में नौकर हाथ में तेल कीं शीशी लेकर आ गया। उसने पूछा, “साहेब, किसके कान में तेल डालना है, आपके या मेहमानों के।” 'निकल जा पाजी, दूर हो जा मेरी आंखों से।” लड़की के पिता चीखे। अच्छा खासा माहोल सामान्य बनाने के लिए लड़की के पिता मुस्कराते हुए पत्नी से बोले, “ख़ुद ही, चाय-पानी लाओ भई, ये लड़का तो एकदम किसी काम का नहीं निकला।” फिर उन्होंने नौकर की ओर ऊंची आवाज में कहा,“जा, तू मेहमानों के लिए पान काट।"” उन्होंने सोचा नौकर खाली बैठे यह भी अच्छा नहीं है।
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पान सेठ जी और उनको पत्नी दोनों ही खाते थे। घर में ही पानदान रखा हुआ था। पान भी रखे थे। पर पान कभी-कभार सड़ जाते थे। उन्हें काटना पड़ता था। अगर सड़े न भी हों तो पत्ते की डडी तो काटनी ही पड़ती थी इसलिए उन्होंने नौकर से 'मेहमानों के लिए ' पान काट ' कह दिया था। उधर सेठ जी की लड़की चाय की ट्रे लेकर आ गई और इचर रामू हाथ में कैची लेकर आ पहुचा। कैंची लेकर कभी वह लड़के क॑ पिता की ओर जाता तो कभी लड़के की ओर।कुछ देर में लड़की की मां की नजर रामू पर पड़ी। उसने पूछा, “रामू, तू इधर खड़ा क्या कर रहा है?” रामू ने बड़े भोलेपन से कहा, “मेहमानो के कान काट रहा हू सेठानी जी।... पर ससुरा ... समझ में नहीं आता कंहा से शुरू करू।” इतना कह कर उसने लड़के के बाप का कान पकड़ लिया और ज्यों ही कैंची मारने को हुआ कि पीछे से सेठ जी ने पकड़ लिया। लड़की वाले “मेहमानों के कान काट रहा हू' सुन कर जहा हक्के-बक्के थे, वहीं लड़के वाले गुस्से में आ गए थे। जब रामू ने कान पकड़ लिया तो उनका गुस्सा आसमान छू गया। उधर सेठ जी ने रामू के मुंह पर एक करारा थप्पड़ जड़ दिया। रामू रोने लगा, “आपकी बात हमारी समझ में ना आवे, कभी तो कहते हैं कि मेहमानों के कान काट, फिर खुद ही झापड़ मारते हैं। रामू जोर-जोर से रोने लगा। सेठ जी की पत्नी उसे समझाने लगी, “बेटे, तुम इतने मूर्ख हो, तुम्हें यह भी पता नहीं कि मेहमानों के कान काटे जाते हैं?” रामू बोला, “हम का जानें, आपके कैसे-कैसे रीति-रिवाज हैं, हमने सोचा शादी तय होने पर कान में चीरा लगा देते होंगे-सारे लड़के बालों के।”उसकी बातें सुन कर सबको हंसी आ गई। मेहमान भी सामान्य हो गए, वरना एक बार तो लड़के वाले उठ कर जाने को तैयार हो गए थे। खैर सेठ जी ने माफी मांग कर मेहमानों को फिर से बैठा दिया।
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तभी सेठ जी की पत्नी पास ही हाथ बांध कर खड़े नौकर से बोली, “इधर आ, मिठाई खा ले।” रामू आंख मूंद कर सेठानी के सामने खड़ा हो गया। बोला, “गलती तो हो गई जी, अब पिटाई खानी ही पड़ेगी जितना चाहे मार लो।” लोग फिर हंसने लगे। ठहाके सुन कर रामू ने आंख खोली तो देखा सेठानी ने उसकी ओर रसगुल्ला बढ़ा रखा था। रसगुल्ला देख कर रामू दहाड़ें मारता हुआ रोने लगा, “अब हम इस घर में नहीं रहेंगे, अभी हम जावत हैं। हमें एक मिनिट यहां नहीं रहना।” सब भौंचक रह गए। रामू के पास आकर सेठ जी ने पूछा, “क्यों भई; तुम रंग में भंग क्यों करने पर तुले हो ? जब मिठाई दे रहे हैं तो इसमें रोने की क्या बात हो गई है?” रामू सुबकता हुआ बोला, “अब आप ही बताओ, हम यहां कैसे रह सकत हैं। जब आपके घर में रसगुल्ले को 'पिटाई' कहते हैं, तो हमसे तो सारा काम उल्टा सीधा होगा ना?” “अरे मूर्ख कान में तेल डाल, पिटाई नहीं मिठाई खाने को कहा था तुझसे।” रामू घीरे से बोला, “तेल डालूं आपके कान में, या तेल का मतलब कुछ ओर होता है...क्योंकि तेल की शीशी लेकर हम आए तो थे पर आप डांटन लगे।'०
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