सेर को सवा सेर | Bachchon Ki Hindi Kahani | New Hindi Kahani Bachchon Ki

 सेर को सवा सेर | Bachchon Ki Hindi Kahani |  New Hindi Kahani Bachchon Ki 
सेर को सवा सेर | Bachchon Ki Hindi Kahani |  New Hindi Kahani Bachchon Ki
New Hindi Kahani Bachchon Ki

सेर को सवा सेर | Bachchon Ki Hindi Kahani |  New Hindi Kahani Bachchon Ki

 गंगापुर में सबसे बड़ी दुकान दमड़ी साह की थी। वहां जरूरत का हर सामान मिल जाता था। पर दमड़ी साह थे बड़े नफाखोर | शहर से सस्ती और रद्‌दी चीजें उठा लाते और मनमाने दामों में बेचते। मिलावट भी खूब करते। चावल-दाल में छोटे पत्थर, धनिए में लकड़ी का बुरादा, मिर्च में ईंट का चूरा, काली मिर्च में पपीते के बीज। यह सब जानते हुए भी लोग कुछ न कह पाते। मजबूरी थी। आस-पास कोई ऐसी दुकान भी नहीं थी।गांव में झुनकू नाम का एक सयाना आदमी रहता था। उसने दमड़ी साह को सबक सिखाने की सोची। एक दिन वह सुबह-सुबह दुकान पर पहुंचा और बोला “राम-राम, साह जी।'' “'क्या चाहिए ?' '-दमड़ी साह बोले।-'“चाहिए तो कुछ नहीं। बस, आपको दावत का बुलावा देने आया था।'  “दावत...! दावत किस खुशी में ?''-दमड़ी साह के मन में लड्डू फूटने लगे। " अरे, गांव के रिश्ते से आप ठहरे चाचा और हम भतीजा। अब आप ही बताइए कि अपने चाचा को दावत देना गलत है क्या?'' दमड़ी साह का मन प्रसन्‍न हो उठा। मुंह में  पानी भर आया। आंखों के सामने पकवानों की थालियां नाचने लगीं। “देखो चाचा, कोई जोर-जबर्दस्ती नहीं है।'" झुनकू ने पांसा फेंका-''हमने तो अपना समझकर कहा था। अगर मर्जी न हो, तो कोई बात नहीं।'' “शिव-शिव! ऐसी अशुभ बात क्‍यों कहते हो भतीजे। तुम बुलाओ और मैं न आऊं? ऐसा हो ही नहीं सकता। मैं अवश्य आऊंगा। ''दमड़ी साह मुलायम हो गए। न्योता देकर झुनकू चला गया। दमड़ी साह का वह दिन मुश्किल से कटा। सोच-सोचकर मुंह में पानी आतारहा। शाम ढलते ही दुकान बंद की। नहा-धोकर धुला धोती-कुर्ता पहना, टोपी लगाई और छड़ी उठाकर चल पढ़े। झुनक दरवाजे पर ही इंतजार में खड़ा था। मुसकराते हुए दमड़ी साह का स्वागत किया और बैठक में ले आया। थालियां सामने सजने लगीं। पकवानों की महक से दमड़ी साह का मन बेचैन हो उठा। आव देखा न ताव उतावले होकर एक कचौड़ी मुंह में डाल ली। लेकिन यह क्या ? मुंह चलाते ही दांतों में जैसे रेत खिसखिसा उठी। दमड़ी साह हक्के-बक्के रह गए। चेहरे की रंगत बदलती देख झुनकू बोला “क्या हुआ? कचौड़ियां अच्छी नहीं हैं ?'' “नहीं-नहीं, बहुत अच्छी हैं !' दमड़ी साह हड़बड़ाकर बोले। हां-हां, होंगीं क्यों नहीं? आटा तो आपकी दुकान से ही मंगवाया था। ''दमड़ी साह पर घड़ों पानी पड़ गया। कुछ कहते न बना। जान छुड़ाने के लिए वह पुलाव की ओर लपके | खुशबूदार पुलाव में काजू पड़े हुए थे। सोचा, चलो पुलाव ही सही। पर जब पुलाव का एक निवाला मुंह में डाला, तो चीख निकल गई। चावल में कंकड़ भरे हुए थे। झुनकू मन ही मन हंसता हुआ बोला- “लगता है पुलाव भी आपको अच्छा नहीं लगा। मैंने तो बड़ी उम्मीद से आपकी दुकान से बासमती चावल मंगवाए थे। खैर, कोई बात नहीं। अब यह खीर खा लीजिए! “क्या शक्कर भी...?”' -दमड़ी साह एकदम घबरा गए। “हां-हां, शक्कर भी तो आपकी दुकान की है। ''झुनकू ने चुटकी लेकर कहा। दमड़ी साह को याद आ गया कि उन्होंने चूहों की गंदगी मिली शक्कर बेची थी। “खीर हो जाए, तो एक प्याला चाय... !'-झुनकू कहने लगा। “क्या यह चाय भी... ?'' “हां भई, आपको छोड़कर हम भला किसके पास जा सकते हैं !' “मेरा पेट भर गया है। मैं चला..!''- कहकर दमड़ी साह भाग छूटे। अरे, पान तो खाते जाइए!'' झुनकू चिल्लाया-' ये अलग से मंगवाए हैं।'' पर दमड़ी साह ऐसे भागे कि पीछे पलटकर नहीं देखा।
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