राजा को सीख | New Moral Stories In Hindi| New Kahani 2020
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बहुत समय पहले एक बहुत ही लालची राजा था। वह हमेशा छोटे-छोटे राज्यों पर आक्रमण करता।राजाओं को
हराकर उनसे धन उगाही करता। उसे अपना खजाना भरने की सनक थी। वह जनता से मनमाना कर वसूलता। जो विरोध करता, उसकी संपत्ति छीन लेता। विरोध करने वाले को यातनाएं भी देता। उसके अत्याचारों से जनता में खौफ पैदा हो गया। एक बार राजा को सपने में कई साधु दिखाई दिए। वे राजा को देखकर हंस रहे थे। राजा की नींद खुली तो फिर नींद नहीं आई। अगले दिन उसने मंत्री से पूछा- “क्या हमारे राज्य में भी साधु हैं ?'' मंत्री ने जवाब दिया-' 'हां महाराज ! पर वे घने जंगलों में रहते हैं। उन्हें घर-परिवार और राजा-प्रजा से कोई लेना-देना नहीं होता। वे तो वैरागी जीवन जीते हैं।'' राजा ने कहा-“मैं साधुओं से मिलना "चाहता हूं।' मंत्री बोला-''क्षमा 'भहाराज, लेकिन साधु किसी से मिलना पसंद नहीं करते। ''राजा अकड़कर बोला-' साधु है तो क्या हुआ? वे हमारे राज्य में रह रहे हैं। हमारी प्रजा का हिस्सा हैं। अपने राजा से मिलने में उन्हें कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। जाओ, सभी साधुओं से कहो कि वे हमारे दरबार में उपस्थित हों ।' मंत्री ने राजा का संदेश साधुओं तक पहुंचाया। लेकिन साधुओं ने राजा के दरबार में आने से इनकार कर दिया। राजा आगबबूला हो गया। वह अपनी सेना के साथ साधुओं से मिलने जंगल की ओर चल पड़ा। सुदूर जंगल में निवास कर रहे साधुओं तक पहुंचते-पहुंचते रात हो गई। किसी तरह राजा साधुओं के ठिकाने तक पहुंचा। सारे साधु साधना में लीन थे। सर्दियों के दिन होने पर भी साधु केवल खाल लपेटे हुए थे। उन पर ठंड का भी कोई असर नहीं हो रहा था। यह देखकर राजा हैरान हो गया। वह सेना सहित है वापस अपने राजमहल लौट आया। उसने मंत्री को आदेश दिया-'' घुम जाओ, साधुओं को कंबल बांट आओ। उनसे कहना कि हमने भिजवाएं हैं।''मंत्री ने आदेश का पालन किया। लेकिन साधुओं ने कंबल लेने से इनकार कर दिया। यह सुनकर राजा को बड़ी हैरानी हुई। वह साधुओं से मिलने चल दिया।
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वह साधुओं के पास पहुंचकर बोला-' “मैंने आप सबके लिए कंबल भिजवाए थे। लेकिन आपने वे भी लौटा दिए।'सारे साधु चुप रहे। पर एक साधु ने जवाब दिया-'“जो राजा खुद कंगाल हो, वह भला किसी को क्या दे सकता है ?'' राजा को गुस्सा आ गया। वह तुनककर बोला-''मैं तुम्हें कंगाल दिखता हूं? पता है, मैंने कई बड़े-बड़े राजाओं को हराया है। मेरे पास अकूत संपत्ति है।'' सुनकर सभी साधु हंसने लगे। एक साधु बोला- “तुम कंगाल ही तो हो। दूसरे राजाओं के राज्यों और धन पर तुम्हारी नजर रहती है। डरा-धमकाकर, छल-कपट से तुम मार-काट मचाते हो। अपनी प्रजा पर मनमाना कर लगाते हो। तुमसे अच्छे तो भिखारी हैं। वे किसी को सताते तो नहीं। भीख मांगकर अपना गुजारा करते हैं।'' साधुओं की बात सुनकर राजा अवाक रह गया। उसे कुछ सूझ ही नहीं रहा था कि अब क्या करे? एक वृद्ध साधु ने समझाया-'“राजन! हम साधु हैं। आज यहां तो कल वहां। दर-दर भटकते हैं। आपका अपयश चारों ओर फैला हुआ है। हमारे पास क्यों आते हैं? जाइए, राजधर्म निभाइए। कुछ तो यश प्राप्त कीजिए।'! राजा की आंखें खुल गईं। वह उलटे पांव महल लौट आया। उसने अन्य राजाओं से मित्रतापूर्ण व्यवहार रखना शुरू कर दिया। प्रजा पर लगाए मनमाने कर वापस ले लिए। किसानों से लगान वसूली में ढील बरती। देखते ही देखते राजा की ख्याति चारों ओर फैलने लगी। वह लोकप्रिय हो गया। हर कोई राजा का सम्मान करने लगा।
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