चतुर प्रेमचंद और चार चोर hindi kahani| Hindi kahani New,

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एक गावं में प्रेमचंद नाम का किसान रहता था। वह बहुत ही चतुर था तथा वह बहुत ही परिश्रमी, ईमानदार और दयालु था। अपने परिश्रम और चतुराई से वह धीरे-धीरे काफी समपन्न हो गया था। प्रेमचंद के बढ़ते हुए धन पर गावं के चार चोरों की निगाहें पड़ गयी और वे उसके धन को उड़ाने की योजना बनाने लगे। और एक रात चारों चोर  प्रेमचंद के घर पहुंचे और चुचाप सेंध लगाने लगे। सेंध लगाकर जब वे घर के भीतर पहुंचे, प्रेमचंद उन्हें अपनी तिजोरी के निकट ही सोता हुआ दिखाई दिया।  इस पर चोरों के सरदार ने धीरे से कहा "ओह यह तो यहीं सोया पड़ा है। यदि हमने तिजोरी तोड़ने की कोशिश की तो यह जाग जायेगा। उसके दुसरे साथियों ने कहा "हाँ, चलो लौट चले। फिर कभी मौका देखेंगे। वे जिस ख़ामोशी से आये थे उसी ख़ामोशी से वापस लौट पड़े, परन्तु जब वे उस कमरे से गुजर रहे थे, जहाँ अनाज की भरी बोरियां रखी थी तो सरदार ने कहा "क्या विचार है दोस्तों क्यों न आज इन्ही से काम चलाया जाय। " उसके बाकि साथियों ने कहा " ठीक कहते हो, खाली हाथ लौटने से तो यही अच्छा है।"तभी उनका एक साथी कुछ सोचता हुआ बोला "लेकिन भाइयों, यह तो सोच लो कि इन बड़ी-बड़ी भारी बोरियों को रखेंगे कहाँ ? कही प्रेमचंद ने पूरे गावं की तलाशी ली तो। " इस पर सरदार ने कहा "अरे यार तुम तो पूरे बेवकूफ हो। भला घर में रखने की जरूरत क्या है, यहीं से सीधा बाजार चलेंगे और इन्हे बेच डालेंगे। यही विचारकर सबने एक-एक बोरी उठा ली और बाजार की तरफ चल पड़े। लेकिन वे चरों इस बात से बेखबर थे की प्रेमचंद को उनकी भनक घर में सेंध लगाते समय ही हो गयी थी और वह उनकी योजना भी सुन चूका था। अब वह उनका चुपचाप पीछा कर रहा था।
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 बाजार पहुंचते -पहुंचते पौं फटने लगी थी, अतः बाजार में चहल-पहल सी होने लगी थी।  फिर जब प्रेमचंद ने देखा कि चारों चोर एक दुकान के सामने पहुँच चुके हैं और अनाज का मोल-भाव करने ही वाले हैं, तो वह पीछे से चिल्ला उठा "अरे भाइयों, कहाँ तक ढोये ले जाओगे। थक गए होंगे। बस यहीं पर बोरियों को रख दो और जाओ। चोरों ने जब पीछे मुड़कर देखा तो उनके होश उड़ गए और पकडे जाने के डर से उन्होंने बोरियों को वहीँ पर पटकर झटपट भाग खड़े हुए।  फिर प्रेमचंद ने उसी दुकानदार को उचित दाम पर चारो अनाज की बोरियों को बेच दिया और ख़ुशी-ख़ुशी रुपये लेकर वापस घर चला आया। इस हार से चोर बुरी तरह चिढ गए थे और वे प्रेमचंद को बर्बाद करने की योजना बनाने लगे थे।
कुछ दिनों बाद के वे चारों चोर फिर सेंध लगाने के लिए प्रेमचंद के घर पहुंचे। लेकिन चोरों के सेंध लगाने की आवाज़ से एक कमरे में सोये प्रेमचंद की आँख अब की बार फिर खुल गई। आवाज़ का पता लगाने जब प्रेमचंद ने खिड़की से बाहर झाँका तो उसका माथा ठनका। वह उन चोरों को पहचान गया और मन ही मन उन्हें मज़ा चखाने के लिए एक योजना बना ली। उसने तुरंत अपनी पत्नी को जगाया और उसे कुछ समझने लगा। उसके बाद दोनों सोने का बहाना करके चारपाई पर लेट गए। चारों चोर घर में घुसकर उस कमरे के दरवाजे पर पहुंचे जहां प्रेमचंद और उसकी पत्नी सोये थे। सरदार ने उन्हें सोता देख धीरे से अपने साथियों से बोला " शुक्र है कि आज वे तिजोरी वाले कमरें में नहीं सोये हैं। हमें आहिस्ता से इस कमरे से होकर तिजोरी वाले कमरे में पहुंचना है। लेकिन चोरों ने जैसे ही उस कमरे से होकर दुसरे कमरे में जाने के लिए कदम रखा, प्रेमचंद की पत्नी चीखती हुई उठ बैठी, और प्रेमचंद को जगाने लगी। चोर घबराकर दरवाजे की ओट में जा छिपे। प्रेमचंद भी आँख मलता हुआ उठ बैठा। मानो वास्तव में पत्नी के जगाने पर ही वह जगा हो। उठते ही प्रेमचंद अपनी पत्नी से पूछा "क्या हुआ भागवान ?कितना सुन्दर सपना देख रहा था, तुमने सब चौपट कर दिया।" पत्नी बोली " अजी अभी चौपट हुआ नहीं है, लेकिन हो जरूर जायेगा यदि मेरा भयानक सपना सच हो गया तो ! प्रेमचंद बोला "भयानक सपना, कैसा भयानक सपना ? पत्नी " अजी, मैंने सपने में देखा कि कुछ चोर हमारा सारा धन चुराकर ले गए और हम बर्बाद हो गएँ हैं। जल्दी से सारा धन तिजोरी से निकलकर कहीं और छिपा दो। कहीं सच में चोर आ टपके तो ! सुनकर प्रेमचंद हँसता हुआ बोला "अरी भागवान, तू चिंता मत कर ! मैंने पहले ही इसी डर से तिजोरी से सारा धन-जेवर निकालकर बगीचे के कुएँ में डाल दिया है -पता नहीं कब चोर आ टपकते और चुरा ले जाते। सुनकर पत्नी खुश हो उठी। उसके बाद दोनों फिर से अपनी जगह लेट गए।

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 दरवाजे के पीछे खड़े उनकी बातें सुन रहे चोरों को खुशी का ठिकाना न रहा। चोरों के सरदार ने ख़ुशी से झूमते हुए कहा "चलो यह भी अच्छा रहा, अब हमें तिजोरी नहीं तोड़नी पड़ेगी। चलो सब कुएँ पर चलते हैं। बहुत चालाक बनता था अब सुबह पता चलेगा। "फिर वे चुपके-चुपके कुंएं के पास आ गए और कुंएं में रस्सी लटकाकर वे चारों एक-एक करके निचे उतरने लगे। लेकिन उन बेचारों को क्या मालूम था कि उस सूखे कुंएं में असंख्य मधुमख्खियों  ने अपना घर बना रखा था और प्रेमचंद ने जानबुझकर मजा चखाने के लिए उन्हें वहां भेजा है। जैसे ही वे कुंएं के भीतर उतरे, अपनी शांति भंग होता देख बड़े-बड़े मधुमख्खियों ने उन्हें अपना शिकार बनाना शुरू कर दिया। बड़ी मुश्किल से वे मधुमख्खियों से पीछा छुड़ाने में सफल हुए।  तब क्रोधित होकर सरदार ने कहा "उस सूअर प्रेमचंद ने तो हमें मरवाने में आज कोई कसर नहीं रख छोड़ी थी। खूब मूर्ख बनाया उसने आज हमें, लेकिन जल्दी ही मैं उससे बदला लेकर रहूँगा।
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फिर कुछ दिनों के बाद जब चोरों की हालत ठीक हो गयी तो एक रात वे फिर प्रेमचंद से अपनी पिछली दोनों असफलताओं का बदला लेने उसके घर पहुँच गए। इस बार वे अपने साथ घातक हथियार भी लाये थे। लेकिन सर्तक प्रेमचंद उस समय अपने छत पर था और उसकी दृष्टि उन चोरो पर पड़ चुकी थी। उनके हाथों में हथियार देखकर वह घबरा गया और सोचने लगा कि " इस बार इनके इरादे खतरनाक लग रहे  हैं, अगर मैंने इस समय पड़ोसियों को आवाज़ लगाने की कोशिश की तो हो सकता है उनके आने से पहले ही ये क्रोध में हमें मार डालें। मुझे होशियारी से काम लेना होगा। जल्दी से नीचे पहुंचकर प्रेमचंद ने गहरी नींद में सोइ अपनी पत्नी को जगाया। पत्नी झल्लाकर बोली "क्या बात है नींद ख़राब कर दी मेरी ? प्रेमचंद " एक चिंता के मारे मुझे नींद नहीं आ रही है, एक बात बताओ अगर तुझे लड़का हुआ तो क्या नाम रखोगी उसका ?" उधर चोर, जो तिजोरी वाले कमरे की ओर बढ़ रहें थे , उनके कमरे से आती बातचीत को सुनकर ठिठक गए और उनकी बातें सुनने लगे। इधर प्रेमचंद के बेतुके प्रश्न को सुनकर नींद की मारी पत्नी झल्लाकर बोली "उसका नाम मैं तुम्हारा सिर रखूंगी।" प्रेमचंद ने फिर कहा "लेकिन मैंने तो उसका नाम मान सिंह रखना सोचा है।" बेचारी पत्नी कुछ न समझी, वह उनींदी से बोली "ठीक है मान सिंह ही रख लेना, अब तो सो जाओ। प्रेमचंद ने फिर कहा "सोऊँ कैसे भागवान, अभी तो मुझे दुसरे लड़के का नाम भी सोचना है। अच्छा तुम्ही बताओं क्या नाम रखोगी दुसरे लड़के का ? पत्नी फिर और गुस्से में बोली "चोर , उसका नाम चोर रख लेना। सुनकर प्रेमचंद खुश होकर बोला " वाह क्या नाम सुझाया है। पहले का नाम मान सिंह ,दुसरे का नाम चोर। "फिर रामदास प्रसन्नता भरे स्वर से आगे बोला " अच्छा एक बात बताओ अगर वे दोनों बाहर चले जाए और हमारी तबियत ख़राब हो तो उन्हें कैसे बुलाएँगे। "पत्नी ने इस पर कहा " मैं उन्हें किसी तरह जाकर बुला लाऊंगी। " तब प्रेमचंद ने डाँटते हुए कहा " गलत मैं तो उन्हें यहीं से इस तरह चिल्ला चिल्लाकर पुकारूंगा। " कहकर प्रेमचंद जोर- जोर से चिल्लाने लगा "मान सिंह रे - चोर रे - जल्दी आओ रे ! मान सिंह रे - चोर रे - जल्दी आओ रे ! वास्तव में प्रेमचंद के घर के पड़ोस में मान सिंह नाम का एक पहलवान रहता था। प्रेमचंद की आवाज़ सुनकर उसकी नींद टूट गई। मान सिंह ने सुना तो ये बोला, "अरे यह तो प्रेमचंद की आवाज़ है।  शायद उसके घर में चोर घुसे हैं।  जल्दी से पड़ोसियों को एकत्रित करूँ।"
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आनन फानन में मान सिंह ने पड़ोसियों को एकत्रित किया और सभी लाठियां आदि लेकर प्रेमचंद के घर की ओर दौड़ पड़े।  पहले तो चोरों को समझ में कुछ नहीं आया लेकिन जब तक वह समझ पाते तब तक मान सिंह बहुत से लोगो को लेकर वहाँ आ पंहुचा था।  और इससे पहले की वे चारों समझ पाते, भीड़ उनपर टूट पड़ी।  इस तरह प्रेमचंद की चालाकी से न केवल वे चारों चोर पकड़े गए बल्कि उन्हें जेल की हवा भी खानी पड़ी। 
जब प्रेमचंद ने गाँव वालो को उन चोरों की पूरी कहानी सुनाई तो सब हँसते हँसते लोट-पोट हो गए और उसकी बुद्धिमानी और चालाकी की भूरि- भूरि प्रशंसा  करने लगे। 
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